Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन और बिम्ब विधान के कारण बिम्ब के आश्रय भी हैं । इसी तरह मुहावरे, लोकोक्तियों आदि में भी दोनों प्रकार के अन्तर विद्यामान रहते हैं । जयोदय में। ब विधान
जयोदय की भाषा बिम्बात्मकता से मण्डित है । अतः बिम्ब विधान से भाषा में जो प्रत्यक्षानुभूतिवत् सम्प्रेषणीयता आती है, वह जयोदय की भाषा में विद्यमान है । प्रस्तुत काव्य में प्रयुक्त बिम्बों का वर्गीकरण निम्न दृष्टियों से किया जा सकता है : ऐन्द्रिय संवेदना, अभिव्यक्तिविधा (अलंकार, लाक्षणिक प्रयोग, विभावादि), बिम्बाश्रयभूत भाषिक अवयव (वाक्य, संज्ञा, विशेषण, क्रिया), बिम्ब सर्जक पदार्थों का क्षेत्र -
(१) प्रकृति : जल, आकाश, पर्वत, जीवजन्तु आदि (२) जीवन, समाज एवं संस्कृति' तथा रस
यहाँ विस्तारभय से केवल प्रथम तीन दृष्टियों से वर्गीकरण कर जयोदय के बिम्ब विधान का विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है । ऐन्द्रिय संवेदनावित वर्गीकरण
संवेदना के आधार पर बिम्बों के पाँच भेद होते हैं : दृष्टिपरक, स्पर्शपरक, घ्राणपरक, श्रवणपरक एवं स्वादपरक । कवि ने जयोदय में घ्राणपरक बिम्ब को छोड़कर सभी प्रकार के बिम्बों की योजना की है। दृरिपरक बिम्ब
काव्यात्मक बिम्बों में सबसे अधिक संख्या दृष्टिपरक बिम्बों की होती है । जीवन में भी संभवतः नेत्रों का व्यापार ही प्रधान रहता है । इसी कारण दृष्टिपरक बिम्ब काव्य में सर्वाधिक प्रयुक्त होते हैं। जयोदय में भी चाक्षुष बिम्बों की संख्या सर्वाधिक है । उसका अधिकांश दृश्यवर्णनों से परिपूर्ण है । ज्ञानसागर जी के बिम्बों में समग्रता का गुण विद्यमान है । वर्ण्य वस्तु के प्रत्येक अंग की प्रतीति कराने वाले बिम्बों की उन्होंने सर्जना की है। निम्न पद्य समवशरण की रचना, वहाँ के वातावरण की निर्मलता, रलों की प्रभा आदि का समग्र चित्र दृष्टि में उतार देता है -
परिपौतमिवाम्बरं शुचि हरितां तीसवोडवा रुचिः । परणीतलमब्दनिर्मलं जगतां सम्मदसृश्ये बलम् ॥२६/४ ॥
१. जायसी की विम्ब योजना, पृ० १७५-२०