Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
View full book text
________________
जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
२०१
उसे अपने मानापमान की परवाह नहीं है । वह आमन्त्रित न किये जाने पर भी सुलोचना के स्वयंवर में पहुँच जाता है। इस विषय में वह अपने मन्त्री के परामर्श की भी उपेक्षा कर देता है । '
1
अर्ककीर्ति के काशी पहुँचने पर, स्वयंवर समारोह के पूर्व उसके छल-कपट का परिचय मिलता है । अर्ककीर्ति विचारता है कि यदि स्वयंवर मण्डप में सुलोचना ने मेरा वरण नहीं किया तो मेरा अपमान होगा। इस स्थिति में मैं उसका अपहरण करूँगा । वह अपने साथियों के साथ ऐसी योजनायें बनाता है, जिनसे सुलोचना उसका वरण करने के लिए विवश हो जाय । इसके लिये वह सुलोचना के कञ्चुकी को प्रलोभन भी देता है किन्तु उसे सफलता नहीं मिलती । २
स्वयंवर सभा में सुलोचना अर्ककीर्ति के गले में वरमाला न डाल कर आगे बढ़ जाती है तो वह निराश हो जाता है और अपने मित्र दुर्मर्षण के द्वारा उत्तेजित किये जाने पर जयकुमार से युद्ध करने के लिए तैयार हो जाता है । वह अपने मन्त्री अनवद्यमति के युद्ध न करने के परामर्श और अकम्पन के दूत द्वारा लाये गये सन्धि प्रस्ताव को ठुकरा देता है तथा दुर्वचन कहकर उनका अपमान करता है।
अर्ककीर्ति दम्भी एवं मदोन्मत्त है। वह दूसरों के कहने पर चलता है। स्वयं अपनी बुद्धि से कोई निर्णय नहीं लेता । यही कारण है कि वह युद्ध में जयकुमार द्वारा पराजित हो जाता है । वह उचित - अनुचित के विवेक से रहिल है । यह जानते हुए भी कि जयकुमार उसके पिता भरत चक्रवर्ती के सेनापति एवं महान् पराक्रमी हैं, उनसे युद्ध कर बैठता है । वह स्वाभिमानहीन है। पराजित एवं अपमानित होने के बाद भी काशी नरेश अकम्पन की द्वितीय पुत्री अक्षमाला के साथ विवाह करने के लिए तैयार हो जाता है।
में
अर्ककीर्ति में अनेक दुर्गुणों के साथ कुछ सद्गुण भी दृष्टिगोचर होते हैं। वह युद्ध हुए नरसंहार से दुःखी हो जाता है और पश्चाताप करते हुए जिनेन्द्रदेव की स्तुति वन्दन करता है । नृपति अकम्पन जब पराजित अर्ककीर्ति को समझाते हैं तो वह अपनी भूल स्वीकार कर लेता है अपने मन्त्री अनवद्यमति के कथन को न मानने का पश्चाताप करता
१. जयोदय, ४/१-१६
२. वही, ४/२८-४७
३. वही, ७/१-७२
४. वही, ९/१९-२३
५. वही, ८ / ९४