Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 285
________________ २२७ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन राष्ट्र प्रवर्ततामिज्यां तन्वनिर्वावमुद्रपुरम् ॥ गणसेवी नृपो जातराष्ट्रस्नेहो वृषेषणाम् । वहनिर्णयधीशाली ग्राम्यदोषातिगः क्षमः ॥' ___ - देश निर्बाधरूप से महती प्रतिष्ठा को प्राप्त करता हुआ विद्यमान रहे । राजा गणसेवी, देश से स्नेह करने वाला, धर्म को धारण करने वाला, बुद्धि से सुशोभित, ग्राम्य दोष से रहित और शक्तिशाली हो । जयोदय में राष्ट्रीय महत्ता का द्योतन करने वाला श्लेषालंकारमय वैशिष्ट्य परिलक्षित होता है । ऐसे वैशिष्ट्य का पूर्ववर्ती काव्यों में अभाव है। काव्य में गुंजायमान राष्ट्रीय चेतना के स्वर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की कोशिकाओं को झंकृत कर अखण्डता, एकनिष्ठता और सदाचरण की ओर कदम बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं तथा 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का पाठ पढ़ा कर राष्ट्रीयता को प्रस्फुटित करते हैं । LLL १. जयोदय, २८/१०० का उत्तरार्ध, १०१

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