Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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द्वितीय परिशिष्ट
जयोदय में राष्ट्रीय चेतना साहित्यकार संसार, शरीर और भोगों से असंपृक्त भले ही हो पर वह स्वयं राष्ट्रीय चेतना से अछूता नहीं रह सकता । राष्ट्र भक्ति में, राष्ट्र के विकास में, साहित्यिक परिवेश में उसका प्रदेय उपेक्षित नहीं हो सकता । ऐसा होना स्वाभाविक भी है । कारण कवि देश, काल, परिस्थिति, वातावरण आदि से प्रभावित होता है । उसका प्रभाव उसके साहित्य पर प्रत्यक्ष देखा जा सकता है । जयोदय भी इसका अपवाद नहीं है । जयोदय का सृजन ऐसे समय में हुआ जब देश स्वतन्त्र हो गया था और भारत में गांधीजी, नेहरू परिवार, राजगोपालाचार्य, डॉ. राजेन्द्रप्रसाद, सरोजिनी नायडू, सुभाषचन्द्र बोस, जिन्ना आदि राजनेता सिद्ध हो रहे थे । महाकवि ने जयोदय महाकाव्य के अठारहवें सर्ग के चार पद्यों में प्रमुख नेताओं के नाम का उल्लेख बड़ी श्रद्धा से श्लेष के द्वारा किया है । डॉ. भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी के वागीश शास्त्री' अनुसार राष्ट्रीय सुधारस से परिपूर्ण ये चार पद्य शाकुन्तलम् के चार पद्यों के समान स्मरणीय रहेंगे।'
देश के स्वतन्त्र होने और अंग्रेजों के भारत से गमन करने पर प्राप्त आनन्दानुभूति को निम्न पद्यों में देखा जा सकता है -
सत्कीर्तिरञ्चति किलाभ्यु दयं सुभासा, स्थानं विनारि-मूदुवल्लभराट् तथा सः। याति प्रसनमुखतां खलु पद्मराजो, निति साम्प्रतमितः सितरुक्समाजः ॥ पता सुगां पियमिता विनतिस्तु राज - गोपाल उत्सारस्तव घे नु रागात् । हरा सरोजिनि अयो विषणे जिन्ना -
नुचानमेति परमात्मविदेकमानात् ॥ - हे देव! इस समय (वि. सं. २००९) सुभाषचन्द्र बोस की उज्जवल कीर्ति अभ्युदय को प्राप्त हो रही है। अजात शत्रु तथा कोमल प्रकृति वालों को प्रिय डॉ. राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति
१. जयोदय उत्तरार्ध भूमिका, पृष्ठ-२१ २. वही, १८/८१ ३. वहीं, १८/८३