Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 268
________________ २१० जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन चरणानुयोग का अध्ययनकर सन्मार्ग को न छोड़ता हुआ सदैव सदाचरण करे । क्योंकि सन्मार्ग पर चलने वाले को क्या कष्ट होगा ?' जगत् में क्या-क्या चीजें हैं और किस-किस चीज का कैस सुन्दर या असुन्दर परिणाम होता है, यह जानने के लिए द्रव्यानुयोग-शास्त्र का अध्ययन करना चाहिए, क्योंकि वस्तु की वस्तुता वितर्क का विषय नहीं है। इन उपर्युक्त प्रथमानुयोगादि शास्त्रों में कथन की अपनी-अपनी शैली के भेदों से आत्मकल्याण की ही बातें कही गयी हैं। हम पृथ्वी पर देखते हैं कि सीने की मशीन से सीना और कसीदा निकालना ये सब कारीगरियाँ उस वस्त्र को पहनने योग्य बनाने के लिए ही होती हैं । ' बिना कुछ विचार किये सब पर विश्वास पर बैठना अपने आपको ठगाना है । किन्तु सब जगह शंका ही शंका करनेवाला भी कुछ नहीं कर सकता । इसलिये समझदार मनुष्य योग्यता से काम ले, क्योंकि अति सर्वत्र दुःखदायी ही होता है। तत्पश्चात् मनुष्य को चाहिए कि शब्द-शास्त्र पढ़कर निरुक्ति के द्वारा पदों की सिद्धि जानते हुए व्याकरण-शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करे । क्योंकि वचन की शुद्धि ही पदार्थ की शुद्धि की विधायक होती है। बुद्धिमान् का कर्तव्य है कि वह काव्यशास्त्र का अध्ययन करके उपमा, अपहृति, रूपक आदि अलंकारों का भी ज्ञान प्राप्त करे । चूँकि वाणी प्रायः प्रसंगानुसारिणी होती है, अतः अलंकारों द्वारा ही वह अपने अभिप्राय का यथोचित बोध करा पाती है। गृहस्थ उत्तम व्याकरणशास्त्र, अलंकारशास्त्र और छन्दशास्त्र जो कि परस्पर वाच्य-वाचक के समन्वय को लिए हुए होते हैं और जो वाङ्मय के नाम से कहे जाते हैं, उनका अच्छी तरह से अध्ययन करे। गृहस्थ मनुष्य को आयुर्वेदशास्त्र का भी अध्ययन करना चाहिए जिससे अपनी सुख-सुविधा के मार्ग में स्वास्थ्य से किसी तरह की बाधा न होने पाये और अपने सहयोगियों का मन भी प्रसन्न रहे । क्योंकि शरीर ही सभी तरह के सौख्यों का मूल है। जैसे कि घोड़े को उछल-कूद भी सीखनी पड़ती है, वैसे ही गृहस्थाश्रम में रहने वाले मनुष्य को कामशास्त्र का अध्ययन भी यलपूर्वक करना चाहिए । अन्यथा फिर अनेक प्रसंगों में धोखा खाना पड़ता है। गृहस्थ को निमित्तशास्त्र या ज्योतिषशास्त्र का भी अध्ययन करना चाहिए, जिससे यथोचित भविष्य का दर्शन हो सके । फिर उसके सहारे १. जयोदय, २/४८ २. वही, २/४९ ३. वी, २/५० ४. वहीं, २/५१ ५. जयोदय, २/५२ ६. वही, २/५४ ७. वही, २/५५ ८. वही, २/५६ ९. वही, २/५७

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