Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 271
________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन २१३ दान . विश्वहित की पवित्र भावना को रखनेवाला और स्थितिकारी मार्ग का आदर करनेवाला गृहस्थ यथाशक्ति अपने न्यायोपार्जित द्रव्य का दान भी करता रहे । यों पेट तो कुत्ता भी शीघ्र भर ही लेता है।' मधुर संभाषणपूर्वक अपनी शक्ति के अनुसार योग्य अन्न और जल का दान करते हुए अपने घर आये अतिथि का समीचीनरूप से विसर्जन करना अर्थात् उसे प्रसन्नकर भेजना गृहस्थ के धर्म कार्यों में सबसे मुख्य है । सृष्टि के लिए किया हुआ दान ही अपने अभीष्ट के पोषण के लिए होता है । जैसे जमीन में सींचा हुआ जल वृक्ष के संवर्धन के लिए ही होता है । गृहस्थ अपने संचित पापकर्म को दूर हटाने के लिए धर्मपात्र (दिगम्बर साधु आदि) का संतर्पण करे और ऐहिक जीवन प्रसन्नता से बिताने के लिए कार्यपात्रों (भृत्यादि) की आवश्यकतायें भी यथोचित पूरी करता रहे । इसके अतिरिक्त अपना यश भूमण्डल पर फैले, इसके लिए दान भी देता रहे, क्योंकि अपयशी पुरुष जीवन ही कैसे बिता सकेगा ?" कुशल और शुद्धचित्त गृहस्थ, मुनियों में श्रद्धा रखते हुए नवधा भक्ति द्वारा उनके लिए भोजन, वस्त्र, पात्रादि उपकरण, औषधि और शास्त्र का दान करे क्योंकि यतियों का सान्निध्य तो विनयादि गुणों से ही प्राप्त होता है । गृहस्थ को चाहिए कि वह जिस प्रकार गुणवान् ऋषिवरों का आदर करे उसी प्रकार समीचीन मार्ग को अपनाने वाले मध्यम साधुओं और तटस्थ साधुओं को भी संतर्पित करता रहे । क्योंकि लज्जावान् राजा धनवानों तथा गरीबों दोनों को अपनी प्रजा का अंग मानता है । ___ गृहस्थ का कर्तव्य है कि यथायोग्य मकान आदि उपयोगी वस्तुयें देकर सबकी संभाल करता रहे जिससे जीवन निर्वाह में सुविधा बनी रहे । क्योंकि रात्रि में दीपक के बिना गति ही क्या है ? अर्थात् रात्रि में दीपक के बिना जैसे निर्वाह कठिन होता है, वैसे ही ऐसा न करने पर गृहस्थ जीवन भी दूभर बन जाता है। ऐहिक जीवन सुख-सुविधा से बिताने की इच्छा वाले गृहस्थ को आवश्यक है कि अपने त्रिवर्ग के साधन में सहायता करने वाले लोगों को भी सन्तुष्ट करते हुए उन्हें निराकुल बनाये । अगर कुम्भकार न हो तो हमें बर्तन कौन देगा और फिर हम अपने पीने का पानी किसमें लायेंगे ? निश्चय ही प्राणीमात्र का कष्ट दूर हो जाय, इस प्रकार करुणा की कोमल भावना रखते हुए गृहस्थ समय-समय १. जयोदय, २/९१ २. वहीं, २/९२ ३. वहीं, २/९३ ४. वहीं, २/९४ ५. जयोदय, २/९५ ६. वही, २/९६ ७. वही, २/९७ ८. वही, २/९८

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