Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

View full book text
Previous | Next

Page 266
________________ २०८ . जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन सबसे सौहार्द रखने पर प्राप्त होता है । इसलिए गृहस्थ ही त्रिवर्ग का संग्राहक होता है।' अन्तिम मोक्ष-पुरुषार्थ कर्मों के अभाव का कारण रूप उद्यम है । वह तपस्वियों के लिए तो स्वकृत कर्मों का विनाशक है, किन्तु श्रावकों (गृहस्थ साधकों) के लिए निश्चय ही पापों का नाशक है । देवपूजन प्रातःकाल गृहस्थ का मन और इन्द्रियाँ प्रसन्न रहती हैं, अतः उस समय प्रधानतया सब अनर्थों का विनाश करने वाला देव-पूजन करना चाहिए, ताकि सारा दिन प्रसन्नता से बीते । प्रसिद्ध है कि दिन के आरम्भ में जैसा शुभ या अशुभ कर्म किया जाता है, वैसा ही सारा दिन बीतता है। भगवान् अरहन्त देव ही पूजनीय हैं क्योंकि वे मंगलों में उत्तम और शरणागतवत्सल हैं । वे देवों के भी देव हैं । प्राणियों का हित करनेवाला उनके समान और कोई नहीं है। जैसे धनवानों के द्वारा उतार कर फेंके गये वस्त्रादि निर्धनों के लिए अलंकार के समान आदरणीय हो जाते हैं, वैसे ही भगवान् अरहन्तदेव के चरणों की रज हम जैसों के भवरोगों को दूर करती है । उनके स्नान (अभिषेक) का जल सज्जनों के मस्तक को पवित्र करता है। भक्तों की पूजा पद्धतियाँ उनकी स्वाभाविक अभिरुचि के वश भिन्न-भिन्न हुआ करती हैं । किन्तु जैसे नर्तकी मूलसूत्र का सहारा लेकर तरह-तरह से नाचती है, इससे उसका नर्तन दोषपूर्ण नहीं होता, वैसे ही पूजा पद्धतियों का मूल उद्देश्य भगवान् की पूजा ही है, अतः पद्धति भेद में कोई दोष नहीं है। . गृहस्थ को अपने अव्यक्तदेव का स्वरूप उनकी प्रतिमा के द्वारा समझ लेना चाहिए। बालक को हाथी, घोड़े आदि का परिज्ञान उनके आकारवाले खिलौनों के द्वारा ही होता है। जिनेन्द्र भगवान् के बिम्ब की प्रतिष्ठा संसारी आत्माओं के लिए शान्तिदायक होती है । किसान फसल को पशु-पक्षियों से बचाये रखने के लिए ही एक मनुष्याकार पुतला बनाकर खेत के बीच खड़ा कर देता है । इससे वह अपने उद्देश्य में सफल ही होता है । मन्त्रों के द्वारा जिन-भगवान के प्रतिबिम्ब में जो उनके गुणो का आरोपण किया जाता है, वह सर्वथा निर्दोष ही है । क्या युद्ध में मंत्रित कर फेंके गये उड़द आदि शत्रु के लिए मरण, विक्षेप आदि उपद्रव करने वाले नहीं होते ?' १. वही, २/२१ २. वही, २/२२ ३. वही, २/२३ ४. वही, २/२७ ... जयोदय, २/२८ ६. वहीं, २/२९ ७. वहीं, २/३० ८. वहीं, २/३१ ९. वहीं, २/३२

Loading...

Page Navigation
1 ... 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292