Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
२०३ अर्ककीर्ति उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लेता है, तब राजा उन दोनों का विवाह कर देते हैं। राजा अकम्पन अर्ककीर्ति और जयकुमार में मित्रता करा देते हैं।
अकम्पन अत्यन्त विनम्र हैं । स्वयंवर में सम्मिलित होने हेतु पधारे अर्ककीर्ति का स्वागत करने जब अकम्पन अपने द्वार पर जाते हैं तो अर्ककीर्ति का दुर्मति मन्त्री उनसे कटु वचन कहता है । वे उसके वचन को सुनकर भी कोई प्रत्युत्तर नहीं देते ।
___ अकम्पन के स्वभाव में किंचित् भीरुता के भी दर्शन होते हैं । अर्कीति के पराजित होने पर अकम्पन विचारते हैं कि मैं अर्ककीर्ति को तो प्रसन्न कर लूँगा, किन्तु यदि उसके पिता भरत चक्रवर्ती क्रुद्ध हो गये तब क्या होगा ? समुद्र में रहकर मगर से वैर करने वाला व्यक्ति कभी भी सुख से नहीं रह सकता । ऐसा विचार कर क्षमा-याचना के लिए भरत चक्रवर्ती के समीप अपने सुमुख दूत को भेजते हैं ।
काशी नरेश अकम्पन अपने सारे कर्तव्यों से निवृत्त होकर अन्त में तीर्थंकर ऋषभदेव के चरणों में जाकर जिनदीक्षा अंगीकार कर लेते हैं ।
इस प्रकार अकम्पन के रूप में हमें वात्सल्यमय पिता, न्यायशील एवं शान्तिप्रिय । राजा तथा एक धर्मप्राण मोक्षाभिलाषी मानव के दर्शन होते हैं। चक्रवर्ती सम्राट् भरत
सम्राट् भरत आद्य तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र हैं । वे चक्रवर्ती हैं । इन्हीं के नाम से इस देश का नाम "भारत वर्ष" प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ । चक्रवर्ती होते हुए भी अत्यन्त विनम्र हैं । जब काशी नरेश अकम्पन का दूत सुलोचना के स्वयंवरण का समाचार लेकर उनके पास आता है, तब वे उसका स्वागत करते हैं । सुलोचना के स्वयंवर का समाचार पाकर हर्षित हो वे सुलोचना की विलक्षण बुद्धिमत्ता एवं स्वयंवर परम्परा के प्रवर्तक काशी नरेश अकम्पन की महती प्रशंसा करते हैं । वे सद्गुणों और सत्कार्यों के प्रशंसक हैं
और अनुचित कार्य के निन्दक । उनके पुत्र अर्ककीर्ति ने जयकुमार के साथ जो अनुचित रूप से युद्ध किया उसकी वे निन्दा करते हैं।
जब राजा जयकुमार सम्राट् भरत से मिलने अयोध्या पहुँचते हैं तब वे उसका स्वागत करते हुए अपना स्नेह प्रकट करते हैं । जयकुमार एवं सुलोचना को अनेक वस्त्राभूषण प्रदान कर विदा करते हैं।

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