Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन स्पर्शपरक बिम्ब
जयोदय में स्पर्शपरक विम्वों की संख्या अत्यल्प है । कवि ने कठोर वचनों की पीडाकारकता को अंगारे के स्पर्शपरक बिम्ब द्वारा सफलतया प्रतीत कराया है :
दहनस्य प्रयोगेण तस्येत्थं दारुणेङ्गितः।
दग्धश्चक्रिसुतो व्यक्ता अंगारा हि ततो गिरः ॥७/१८ -- दुर्मर्षण की गिरा रूप अग्नि के प्रयोग से चक्रवर्ती का दुष्ट पुत्र अर्ककीर्ति काष्ठ के समान धधक उठा । उसके मुख से अंगार के समान वचन निकलने लगे।
सुन्दरी सुलोचना के केशों की सुकोमलता व्यंजित करने के लिए कवि ने नवनीत के उपमान द्वारा अत्यन्त प्रभावशाली स्पर्शबिम्ब निर्मित किण है :
· काला हि बालाः खलु कजलस्य रूपे स्वरूपे गतिमजलस्य ।
स्पर्श मूदुत्वादुत मृक्षणस्य तुल्या स्मरारेर्गललक्षणस्य ॥११/६९ -- सुलोचना के काले केश रंग में काजल के समान हैं, स्वरूप में बहते पानी के समान हैं, स्पर्श में नवनीतसम हैं तथा दृष्टि को सुख देने में कामारि शंकर के गले के नीले रंग के समान हैं। स्वादपरक बिम्ब
कवि ने कुछ स्थलों पर उपमाओं और विशेषणों द्वारा स्वादपरक बिम्ब उपस्थित कर मानव मनोभावों और वस्तुओं के वैशिष्ट्य को व्यंजित किया है - सुलोचना को अर्ककीर्ति की प्रशंसा ऐसी लगी जैसे आक का कड़वा पत्ता :
इत्येवमर्ककीर्तेः पल्लवमतिहल्लवं स्म जानाति ।
स्मरचापसबिभभूः कटुकं परमर्कदलपातिः ।। ६/१८ कवि को पूजन में प्रयुक्त अष्ट मंगलद्रव्य गुड़ के समान मधुर प्रतीत होते हैं :
परमेष्ठिर सेष्टितत्पराणीति सतां श्रीरसतारतम्यफाणिः ।
किल सन्ति लसन्ति मङ्गलानि सुतरां स्वस्तिकम वाङ्मुखानि ॥ १२/७ निम्न श्लोक में कवि ने मधुर विशेषण द्वारा वचनों की कर्णप्रियता को मूर्तित किया
अभिमुखपन्ती सुदृशं ततान सा भारती रतीन्द्रवरे । वसुधासुपानिपाने मधुरां पदबन्धुरां तु नरे ॥ ६/५० ॥