Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
(३)
शृंगार रसाभास
आचार्य विश्वनाथ ने पूर्वाचार्यों के मतों का संग्रह करते हुए निम्नलिखित रतियों को शृंगार रसाभास का हेतु बतलाया है ।
(१) परपुरुष के प्रति रति (२) मुनि-पत्नी एवं गुरु-पत्नी के प्रति रति
बहुनायकनिष्ठ रति
अनुभयनिष्ठरति (एक पक्षीय रति) . (५) प्रतिनायकनिष्ठ रति (६) अधमपात्रनिष्ठ रति (७) पशु-पक्षीनिष्ठ रति'
जयोदय महाकाव्य में पर-पुरुष के प्रति रति का प्रदर्शन कर शृंगार रसाभास की व्यंजना की गई है । कैलाश पर्वत पर जिनेन्द्रदेव के दर्शन-पूजन के पश्चात् भ्रमण करते हुए जयकुमार के समीप रविप्रभदेव की पत्नी कांचना नामक देवी आती है । वह जयकुमार को विभिन्न कामचेष्टाओं से अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करती है । एक विवाहिता का परपुरुष के प्रति अभिव्यक्त किया गया रति भाव अनुचित होने से यहाँ शृंगार रसाभास अभिव्यंजित हुआ है। भयानक रसाभास
. आचार्य विश्वनाप ने उत्तम पात्र में निर्दिष्ट भय को भयानक रसाभास का हेतु माना है। जयोदय में इसी प्रकार के भयानक रसाभास की सृष्टि हुई है । गंगा नदी पार करते समय उसकी विशाल लहरों के कारण आगे बढ़ने में असमर्थ होकर जयकुमार सहायता हेतु पुकारता है। अतएव यहाँ वीर नायक के मन में भय की उत्पत्ति का वर्णन होने से भयानक रसाभास की व्यंजना होती है।
१. साहित्य दर्पण, ३/२६३-२६५.. २. जयोदय, २४/१०५-१०७, १२७-१३९ * . ३. उत्तमपात्रगतत्वे भयानके ज्ञेयम् । - साहित्यदर्पण, ३/२६६ ४. जयोदय, २०/५१-५२