Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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नवम अध्याय
वर्णविन्यासवक्रता वर्णों (व्यंजनों) का ऐसा विन्यास (प्रयोग) जिससे नाद सौन्दर्य (श्रुतिमाधुर्य) की सृष्टि हो, रस का उत्कर्ष हो, वस्तु की प्रभावशालिता, कोमलता, कठोरता, कर्कशता आदि की व्यंजना हो, शब्द और अर्थ में सामंजस्य स्थापित हो, भावविशेष पर बलाधान हो, (जोर पड़े) तथा अर्थ का विशदीकरण हो, वर्णविन्यास कहलाता है।' यह कार्य विषय या रस के अनुरूप वर्णों (व्यंजनों) की आवृत्ति तथा माधुर्यादि व्यंजक वर्णविन्यास से सम्पन्न होता है । वर्णों की आवृत्ति को अनुप्रास तथा माधुर्यादि व्यंजक वर्णप्रयोग (भले ही आवृत्ति न हो, नये-नये वर्ण का प्रयोग हो) को उपनागरिका आदि वृत्ति तथा वैदर्भी आदि रीति कहते हैं। इन सबको कुन्तक ने वर्णविन्यास नाम दिया है। ___जो वर्ण रस के अनुरूप होते हैं उन्हीं की आवृत्ति को अनुपास कहते हैं - "रसायनुगतत्वेन प्रकर्षण न्यासोऽनुमासः'" रस प्रतिकूल वर्णों की आवृत्ति रस विघातक होने से अलंकार नहीं कहला सकती । वृत्त्यनुप्रास में "वृत्ति" शब्द का अर्थ है रसविषयव्यापारवती रचना, उसके अनुरूप वर्गों का न्यास कृत्यनुप्रास कहलाता है। कुन्तक ने वर्णविन्यास को माधुर्यादि गुणों और सुकुमार आदि मार्गों (उपनागरिकादि वृत्तियों) का अनुसरण करनेवाला कहा है। इससे स्पष्ट है कि अनुप्रास या वर्णों की आवृत्ति माधुर्यादि व्यंजक होनी चाहिये। १. हरदेव बाहरी : "हिन्दी सेमेटिक्स", पृष्ठ ३०६ २. (क) वर्ण साः नुप्रासः । - काव्यप्रकाश, ९/७९ ... (ख) एको नौ बहवो वर्णा वध्यमानाः पुनः पुनः।
. स्वल्पान्तरास्त्रिधा सोक्ता वर्णविन्यासवक्रता ।। वक्रोक्तिजीवित, २/१ (ग) वर्गान्तयोगिनः स्पर्शा द्विरुक्तास्तलनादयः ।
शिष्टाश्च रादिसंयुक्ताः प्रस्तुतौचित्यशोभिनः ।। वही, २/२ ३. (क) माधुर्यव्यंजकैर्वर्णरुपनागरिकोच्यते ।
___ ओजःप्रकाशकैस्तैस्तु परुषा कोमला परैः ।। काव्यप्रकाश, ९/८० (ख) केषाधिदेता वैदर्भीप्रमुखा रीतयो मताः । वही, ९/८१ ४. वक्रोक्तिजीवित, २/१५ ५. साहित्यदर्पण, १०/३ वृत्ति ६. "रसविषयव्यापारवती वर्णरचना वृत्तिः तदनुगतत्वेन प्रकर्षण न्यसनाद् वृत्त्यनुप्रासः ।"
- साहित्यदर्पण,वृत्ति १०/४ ७. वर्णछायानुसारेण गुणमार्गानुवर्तिनी ।
वृत्तिवैचित्र्ययुक्तेति सैव प्रोक्ता चिरन्तनैः । - वक्रोक्तिजीवित, २/५