Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
यमक
• जयोदय में यमक के अनेक रूप मिलते हैं - यथा आद्ययमक, युग्मयमक एवं अन्त्ययमक । इन सभी के द्वारा लयात्मकता एवं श्रुतिमाधुर्य की सृष्टि की गई है । कतिपय उदाहरण द्रष्टव्य हैं - आय यमक
प्रतीहारमतः कश्चित् प्रतीहारमुपेत्य तम् । . नमति स्म मुदा यत्र न मतिः स्मरतः पृषक् ॥ ३/२१ .. .
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विपल्लवानामिह सम्भवोऽपि न विपल्लानामुत शाखिनामपि ।
सदारमन्तेऽस्य विहाय नन्दनं सदा रमन्ते रुचितस्ततः सुराः ॥ २४/५१ . इन श्लोकों में प्रथम चरण के आदि भाग की आवृत्ति द्वितीय चरण के आदि भाग में तथा तृतीय पाद के प्रारम्भिक पद की आवृत्ति चतुर्थ पद के प्रारम्भ में होने से एकदेशज . आययमक है।' युग्मयमक आशा सिता सुरभि-तान-कौतुकेन,
का शासिता सुरमिता नक्कौतुकेन । . पुण्याहवाचनपरा समुदकसारा,
"पुण्याहवाचनपरा समुदकसारा ॥ १८/७१ . प्रस्तुत पध में प्रथम चरण की आवृत्ति द्वितीय चरण में और तृतीय चरण की आवृत्ति चतुर्थ चरण में हुई है, अतः युग्मयमक है। अन्त्य यमक
सौरवं समभिवीय समाया यंत्र रीतिरिति सारसभायाः।
वैभवेन किल सजानताया मोदसिन्धुरुदभूजनतापाः ॥ ५/३४ यहाँ प्रथम पाद के अन्त्य भाग की आवृत्ति द्वितीय पाद के अन्त्य भाग में तथा १. पादं द्विधा वा त्रिधा विभज्य तत्रैकदेशजं कुर्यात् ।
आवर्तयेत्तमंश तत्रान्ययाति वा भूयः ।। रुद्रट् काव्यालंकार, ३/२० २. रुद्रट्कृत काव्यालंकार, ३/१३