Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
सन्मार्ग के ज्ञाता राजा अकम्पन युद्ध में पराजित अर्ककीर्ति के साथ अपनी द्वितीय पुत्री अक्षमाला का विवाह कर देते हैं । " सज्जनों का शरीर परोपकार के लिए ही होता है" ( सतां वपुर्हि प ताय ) -
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अयमयच्छदधीत्य हृदा जिनं तदनुजां तनुजाय रथाङ्गिनः । सुनयनाजनकोऽयनकोविदः परहिताय वपुर्हि सतामिदम् ॥ ९/५६
जयकुमार के देव-मित्र ने उसे युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए युद्ध क्षेत्र में नागपाश एवं अर्धचन्द्र बाण प्रदान किया । " समय पर सहयोग देना ही सहकारित्व कहा जाता है" ( अवसरे अङ्गवत्ता सहकारिसत्ता निगद्यते ) -
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सुरः समागत्यतमां स भद्रं सनागपाशं शरमर्षचन्द्रम् ।
ददौ यतश्चावसरेऽङ्गक्ता निगद्यते सा सहकारिसत्ता ॥ ८/७७
युद्ध में विजयी होने पर भी जयकुमार को हर्ष न होकर दुःख हुआ । “अयोग्य धन को प्राप्त करने पर क्या चित्त प्रसन्न हो सकता है ?" (अयोग्यं वित्तं आदाय चित्तं किमु स्वास्थ्यं लभताम् )
विषसादैव जयोऽस्मात् प्रससाद न जातु विजयतो यस्मात् ।
स्वास्थ्यं लभतां चित्तं ह्यादायायोग्यमिह च किमु वित्तम् ॥ ८/८२
आकाश में कपोतयुगल को देखकर सुलोचना मूर्च्छित हो जाती है । सखियाँ तुरन्त उसकी परिचर्या करती हैं। एक सखी उसकी नासिका के छिद्रों को बन्द कर देती है मानों वह उसके निकलते हुए प्राणों को रोकना चाहती हो । “विपत्ति में साथ देना ही मित्रता कहलाती है") व्यसनेऽनुवृत्तिः सख्यम् -
अभूत् त्वरा संवरितस्वरायाः प्राणानिवोद्गच्छत उज्वरायाः ।
तदावचेतुं परितः प्रवृत्तिः सखीषु सख्यं व्यसनेऽनुवृत्तिः ।। २३/२१
कुछ सूक्तियाँ ऐसी हैं जो प्राकृतिक घटनाओं या तिर्यञ्चों के व्यवहार के उदाहरणों द्वारा महान् या क्षुद्र पुरुषों के स्वभाव का निर्देश करती हैं। इनके द्वारा पात्रों के चारित्रिक वैशिष्ट्य का द्योतन एवं पोषण किया गया है ।
सूर्य जिस प्रकार उदयकाल में लाल रहता है उसी प्रकार अस्त के समय भी रहता "महापुरुष सुख और दुःख में एक जैसे रहते हैं" (महतां सम्पत्सु विपत्सु अपि सदैव तुल्यता तटस्था)
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यथोदयेऽस्तमयेऽपि रक्तः श्रीमान् विवस्वान् विभवैकभक्तः । विपत्सु सम्पत्स्वपि तुल्यते क्मही तटस्था महतां सदैव ॥ १५/२

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