Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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सप्तम अध्याय
लोकोक्तियाँ एवं सूक्तियाँ लोकोक्ति का लक्षण
लोक (जन-साधारण) के दैनिक अनुभवों से उपलब्ध सत्यों को उक्ति वैचित्र्य के द्वारा व्यंजित करने वाली सूत्रात्मकं प्रसिद्ध उक्तियाँ लोकोक्तियों कहलाती हैं । लोकोक्ति मुहावरे से भिन्न है । मुहावरा शब्द या शब्दावली मात्र होता है । अतएव वाक्य का अंग होता है, लोकोक्ति वाक्यात्मक होती है । मुहावरे के रूप में प्रयुक्त होने वाला शब्द या शब्द समूह सन्दर्भ विशेष में ही मुहावरा बनता है । लोकोक्ति स्वतंत्र रूप से ही लोकोक्ति होती है, केवल उसका प्रयोग उचित सन्दर्भ में किया जाता है । मुहावरे का स्वतंत्र रूप से कोई अर्थ नहीं होता, वाक्य में प्रयुक्त होने पर ही सार्थक होता है, जबकि लोकोक्ति स्वतंत्र रूप से सार्थक होती है । "आंखों का काँटा होना" एक मुहावरा है, “काँटे से काँटा निकलता है" एक लोकोक्ति है। लोकोक्तियों का अभिव्यंजनात्मक महत्त्व
लोकोक्तियाँ दृष्टान्त रूप होती हैं जिनके द्वारा तथ्य विशेष को पुष्टकर विश्वसनीय या प्रामाणिक बनाया जाता है । वे किसी तथ्य, क्रिया, आचरण या घटना के विशिष्ट स्वरूप को व्यंजित करने के लिए भी प्रयुक्त होती हैं । उनकी विशेषता यह है कि वे तथ्यों के मर्म को उभार कर गहन एवं तीक्ष्ण बनाकर अभिव्यक्ति को प्रभावशाली और रमणीय बना देती हैं । जैसे -
उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये ।
पयः पानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम् ॥ यहाँ अन्तिम वाक्य लोकोक्ति है । उसमें प्रयुक्त भुजङ्ग शब्द ने दुष्टों की घातक प्रकृति को “पयः पान" शब्द ने उपदेश के हितकर स्वरूप को तथा “विषवर्धन" शब्द ने दुष्टों (मूों) के क्रोध की घातकता तथा उसमें वृद्धि होने के स्वरूप को गहन एवं तीक्ष्ण बना दिया है, इस प्रकार अभिव्यक्ति पैनी हो गई है। जयोदय में लोकोक्तियाँ
जयोदय के कवि ने लोकोक्तियों के समुचित प्रयोग से अभिव्यक्ति को प्रभावशाली एवं रमणीय बनाने का सफल प्रयास किया है । उनके द्वारा प्रयुक्त लोकोक्तियों के विषय