Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन “यहाँ कहीं भी “रतिभाव है" ऐसा उल्लेख नहीं है । हमें अनुभावों अर्थात् उनके क्रियाकलापों के वर्णन द्वारा रतिभाव की प्रतीति होती है । कहना, खीजना, लजाना, मिलना
आदि व्यापार हैं, जो उनकी पारस्परिक रति को प्रकट करते हैं । ये सभी शब्द अपने आप में एक चित्र हैं, जिनसे भाव दृश्य बनकर हमारे सम्मुख आता है और हम रतिभाव की अनुभूति कर सकते हैं । अनुभवगम्यता की क्षमता के कारण ये शब्दचित्र बिम्ब की श्रेणी में आते हैं । स्पष्ट है कि बिम्ब का अवलम्बन लेकर ही भाव अपनी समुचित अभिव्यक्ति प्राप्त करता है।"
"भाव कहीं भी कथ्यरूप में प्रकट नहीं होता । स्वशब्दवाच्यत्व दोष तो काव्यशास्त्र में एक बड़ा दोष माना गया है । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने 'चिन्तामणि' में भावों का विवेचन करते हुए स्पष्ट लिखा है कि जब तक कवि भावों को अनुभावों के रूप में वर्णित नहीं करता, उसकी अनुभूति हो ही नहीं सकती । "क्रोध है" कहने से क्रोध भाव की अनुभूति हो यह कभी सम्भव नहीं है, उसके लिए अनुभावों अर्थात् बिम्दों का माध्यम ही उचित है।२
लोकजीवन में भी भाव की अनुभूति दृश्यमान अवस्था के बिना नहीं होती । करुण भाव की उत्पत्ति करुण दृश्य के बिना नहीं हो सकती, उसके लिए किसी दीन-हीन प्राणी और उसकी विवशताओं का साक्षात्कार होना आवश्यक है । इसी प्रकार हर्ष की उत्पत्ति आनन्द की अनुभवगम्य अवस्था के बिना नहीं हो सकती।
महाकवि कालिदास ने यक्षप्रिया के रूप का जो चित्र निम्न श्लोक में खींचा है उससे यक्षप्रिया का लोकोत्तर सौन्दर्य आँखों के सामने प्रकट हो जाता है -
तन्वी श्यामा शिखरिदशना पक्वविम्बापरोठी, मध्ये क्षामा चकितहरिणीप्रेक्षणा निम्ननाभिः। श्रोणीभारादलसगमना स्तोकनमा स्तनाभ्यां,
'या तत्र स्पायुवतिविषये सति राव धातः॥' गूढ़ और सूक्ष्म दार्शनिक सत्य भी बिम्बों के द्वारा ही प्रेषणीय बनते हैं । इसी कारण दार्शनिकों की भाषा सदा रूपकात्मक होती है । जायसी ने जीवन और जगत् के शाश्वत सत्यों को लोकजीवन के अत्यन्त परिचित बिम्बों के द्वारा सरलतया अनुभूतिगम्य, बनाया है । उदाहरणार्थ -
१. जायसी की विम्ब योजना : डॉ. सुधा सक्सेना, पृष्ठ १३४ २. जायसी की बिम्ब योजना : डॉ. सुधा सक्सेना, पृष्ठ १३४ ३. उत्तरमेघ, १९