Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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प्रस्तावना
__ वर्तमान युग के सुविख्यात दिगम्बर जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागरजी के दर्शनार्थ जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो वहीं उनके गुरु स्व० आचार्य मानसागरजी (पूर्व नाम पं. भूरामलजी) द्वारा प्रणीत विपुल संस्कृत साहित्य का अवलोकन कर विस्मित रह गई । इस युग में जब संस्कृत में साहित्य सर्जन दुर्लभ हो गया है, तब इस भाषा में चार महाकाव्य, एक चम्पू एवं तीन अन्य ग्रन्थों की रचना चकित कर देनेवाला कार्य है । विस्मय तब और भी गहरा हो जाता है जब हम देखते हैं कि सभी रचनाएँ काव्य-शास्त्र की उत्कृष्ट नमूना हैं । महाकाव्य तो बृहत्रयी की कोटि के हैं। इनमें जयोदय महाकाव्य शैली में 'नैषधीय चरित' का, अर्थगौरव में 'किरातार्जुनीय' का, प्रकृतिवर्णन में 'शिशुपाल वध' का, दार्शनिक विवेचन में 'सौन्दरनन्द' का तथा वैराग्य प्रसंग में 'धर्मशर्माभ्युदय' का स्मरण करा देता है। . .
शोध की दृष्टि से ये सभी कृतियाँ अनेक संभावनाएँ गर्भ में छिपाये हुए हैं, इसीलिये शोधार्थियों का ध्यान इनकी ओर आकृष्ट हुआ है । कुमायूँ विश्वविद्यालय, नैनीताल (उ.प्र.) से डॉ. किरण टण्डन ने "मुनि श्रीमानसावर का मतित्व और उनके संस्कृत कामान्यों का साहित्यिक मूल्यांकन" शीर्षक से शोधकार्य कर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। ग. के.पी. पाणव ने स्वतन्त्ररूप से 'जयोदय' पर कार्य किया है । उनका शोध शीर्षक है "जयोदव महाकाब का समीक्षात्मक अध्ययन" । इस विषय पर उन्हें गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर (उ.प्र.) द्वारा . १९८२ में पीएच.डी. की उपाधि प्रदान की गई है। ... डॉ. पाण्डेय के शोध प्रबन्ध का अध्ययन करने के बाद प्रतीत हुआ कि जयोदय में अभी भी शोध की विशाल संभावनाएं हैं। डॉ. पाण्डेय के अध्ययन का पक्ष परम्परागत या शास्त्रीय है। उन्होंने जयोदय को काव्यशास्त्रीय दृष्टि से महाकाव्यत्व और काव्यत्व की कसौटी पर कसा है इसमें महाकाव्य और काव्य सिद्ध करनेवाले कौन-कौन से लक्षण विधमान हैं, वे शास्त्रीय दृष्टि से निर्दोष है या नहीं, निर्दोष है तो किस प्रकार, दोषयुक्त है तो क्यों; यह पक्ष ही उनकी समीक्षा का विषय रहा है। संस्कृत काव्यशास्त्र में रस, भाव, ध्वनि, अलंकार, गुण, रीति एवं दोषाभाव ही किसी काव्य की समीक्षा के आवश्यक तत्त्व माने गये हैं। इसीलिए डॉ० पाण्डेय ने जयोदय महाकाव्य में इन्हीं के विभिन्न रूपों का सर्वेक्षण एवं उनकी शास्त्रीयता का परीक्षण किया है। उदाहरणार्थ अलंकारों के विषय में शोधकर्ता ने यह छानबीन की है कि कवि ने किन-किन अलंकारों का प्रयोग किया है और वे अलंकार अमुक अलंकार किस प्रकार हैं ? इसी प्रकार जयोदय में किन-किन रसों की व्यंजना की गई है और वे इस अमुक रस की परिभाषा में कैसे आते हैं? यह अन्वेषण रस
के विषय में किया गया है । भाव, गुण, रीति एवं ध्वनि के विषय में भी ऐसा ही सर्वेक्षण एवं - विश्लेषण किया गया है। डॉ. पाण्डेय के शोध प्रबन्ध की रूपरेखा इस प्रकार है .