Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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| विषयानुक्रमणी
VI
XI
पृष्ठ संख्या दिग० जैनाचार्य श्री विद्यासागर मुनि महाराज का परिचय प्रकाश किरण प्राक्कथन पुरोवाक्
VIII प्रस्तावना विषयानुक्रमणी
XVII प्रक्म अध्याय: महाकवि भूरामलजी का व्यक्तित्व एवं सर्जना
१-३४ जन्मस्थल एवं बाल्यकाल, शिक्षा, नवप्रवर्तन, कार्य क्षेत्र, साहित्य सर्जना, चारित्र की ओर कदम, शिष्यवृन्द, आचार्य पद, चारित्रचक्रवर्ती पद, समाधिमरण । संस्कृत साहित्य : महाकाव्य - जयोदय, वीरोदय, सुदर्शनोदय, भद्रोदय, दयोदय चम्पू । मुलक काव्य: मुनिमनोरञ्जनाशीति (मुनिमनोरंजन शतक), "ऋषि कैसा होता है ?" सम्यक्त्वसार शतक, प्रवचनसार प्रतिरूपक । हिन्दी साहित्य : महाकाव्य - ऋषभावतार, भाग्योदय, गुणसुन्दर वृत्तान्त । गय- कर्तव्यपथ प्रदर्शन, मानवधर्म, सचित्त विवेचन, स्वामी कुन्दकुन्द और सनातन जैन धर्म । पप - पवित्र मानव जीवन, सरल जैन विवाह विधि, टीकापन्य • तत्त्वार्थ दीपिका । अनुवाद - विवेकोदय (समयसार का पद्यानुवाद), देवागम स्तोत्र का पद्यानुवाद, नियमसार का पद्यानुवाद,
अष्टपाहुड का पद्यानुवाद, समयसार तात्पर्यवृत्ति की टीका । वितीय अध्याय - जयोदय का कथानक एवं महाकाव्य
कथानक, जयोदय का कथास्रोत, मूलकया में परिवर्तन और उसका औचित्य,
जयोदय का महाकाव्यत्व, जयोदय की काव्यात्मकता । तृतीय अध्याय : ककता, व्यंजकता एवं पनि
५७-७७ • व्यंजकता का स्वरूप, व्यंजकता के प्रकार, व्यंजकता का हेतु ------ उक्ति
की वक्रता । जयोदय में वक्रता ----- रूढ़िवैचित्र्यवक्रता पर्यायवक्रता, विशेषणवक्रता, संवृतिवक्रता, वृत्तिवैचित्र्यवक्रता, लिंगवैचित्र्यवक्रता, क्रियावैचित्र्यवक्रता, कारकवक्रता, संख्यावक्रता, पुरुषवक्रता, उपसर्गवक्रता, निपातवक्रता, उपचारवक्रता । उपचारवक्रता का महत्त्व, जयोदय में उपचार वक्रता ----- मानव के साथ तिर्यंच के धर्म का प्रयोग, जड़ के साथ चेतन के धर्म का प्रयोग, चेतन के साथ जड़ के धर्म का प्रयोग, अमूर्त के साथ मूर्त के धर्म का प्रयोग, भिन्न पदार्थों में अभेद का आरोप, वाक्यवक्रता एवं वर्णविन्यासवक्रता।