Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन जयकुमार की स्थिति को स्पष्ट करने में सिंहसुत का दृष्टान्त कितना उपयुक्त है -
साधारणपराधीशाञ् जित्वाऽपि स जयः कुतः ।
द्विपेन्द्रो नु मृगेन्द्रस्य सुतेन तुलनामियात् ॥ ७/४९॥
- जयकुमार ने साधारण राजाओं को जीता है, क्या वह पूर्ण विजयी कहला सकता है ? हाथी अन्य पशुओं से बड़ा होने पर भी क्या सिंह के बच्चे की बराबरी कर सकता है?
__ जयकुमार के हाथों पराजित अर्ककीर्ति को राजा अकम्पन समझाते हैं । अकम्पन द्वारा जयकुमार के प्रति क्षमाभाव धारण किये जाने के औचित्य को गाय और बछड़े का दृष्टान्त अत्यन्त मार्मिक ढंग से प्रतिपादित करता है।
यदपि चापलमाप ललाम ते जय इहास्तु स एव महामते ।
उरसि सनिहतापि पयोऽर्पयत्यय निजाय तुजे सुरभिः स्वयम् ॥ ९/१२॥ (उत्तरार्ध) - राजन् ! आप महान् हैं । जयकुमार ने जो चपलता की (युद्ध में आपको पराजित कर बन्दी बनाया) उसे भूल जायें । दूध पीते समय बछड़ा गाय की छाती में चोट मारता है, परन्तु गाय क्रोधित न होकर उसे दूध ही पिलाती है ।
सुख की आशा से संसार में भटकते हुए मनुष्य की भ्रान्तदशा को अनुभूतिगम्य बनाने में मृगमरीचिका के दृष्टान्त ने कवि को अवर्णनीय सफलता प्रदान की है -
भ्रमणमेतु जनः खलु माययातिगुणस्तरुणोऽपि च तृष्णया।
अपि तु जातु च यातु मरीचिकाविवरणे हरिणः किमु वीचिकाम् ॥ २५/४३॥
- मोह से आच्छादित संसारी प्राणी इन्द्रिय विषयों की तृष्णा से तरुण होकर संसार में परिभ्रमण करता है, पर उसे रंचमात्र भी सुख उसी प्रकार प्राप्त नहीं होता, जैसे मरुस्थल में जल प्राप्ति की आशा से भटकते मृग को जल की एक बूंद भी उपलब्ध नहीं होती । मालारुप प्रतिवस्तूपमा
कथन के औचित्य को सिद्ध करने हेतु कवि ने मालारूप प्रतिवस्तूपमा अलंकार का भी प्रयोग किया है । यश्ग -
शक्यमेव सकलैर्विधीयते को नु नागमणिमामुमुत्पतेत् ।
कूपके च रसकोऽप्युपेक्ष्यते पादुका तु पतिता स्थितिः क्षतेः ॥ २/१६ - सभी लोगों के द्वारा शक्य कार्य ही किया जाता है । नागमणि प्राप्त करने के लिये कौन प्रयल करेगा ? कुएँ में पड़े चरस की सभी उपेक्षा करते हैं, परन्तु यदि उसमें जूती गिर जाय तो कोई सहन नहीं करता ।