Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
View full book text
________________
जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन आयु पूर्ण कर अन्तिम ग्रैवेयक स्वर्ग में अहमिन्द्र बनते हैं ।
स्वर्ग में अपनी आयु पूर्णकर चक्रपुर नगर के शासक अपराजित एवं रानी सुन्दरी के यहाँ चक्रायुध पुत्र के रूप में जन्म लेते हैं । धूमधाम से चक्रायुध का जन्मोत्सव मनाया जाता है । युवा होने पर पाँच हजार कन्याओं से इनका विवाह होता है । इनमें चित्रमाला प्रमुख रानी थी।
पिता के दीक्षा लेने पर चक्रायुध राज्यकार्य संभालते हैं । एक समय दर्पण में मुख देखते समय चक्रायुध की दृष्टि मस्तक के श्वेत केश पर पड़ती है। जिससे उनमें वैराग्यभाव जागरित होता है । वे अपने पुत्र को राज्य भार सौंप कर अपराजित मुनिवर से जिनदीक्षा अंगीकार कर लेते हैं और तप द्वारा कर्मों का क्षय कर मोक्ष प्राप्त करते हैं ।
____ प्रस्तुत काव्य महाकाव्योचित गरिमा से युक्त है । दार्शनिकों एवं काव्यशास्त्रियों को सन्तुष्ट करने वाला यह काव्य संस्कृत साहित्य की अमूल्य निधि है । दयोदय चम्मू
गद्य-पद्य में रचित इस कृति में सात लम्ब हैं । इसमें धीवर की कथा द्वारा अहिंसाव्रत का माहात्म्य दर्शाया गया है।
उज्जयिनी नगर में वृषभदत्त राजा राज्य करता था । वृषभदत्त के राज्य में गुणपाल नामक राजश्रेष्ठी था । एक बार गुणपाल श्रेष्ठी के द्वार पर झूठे बर्तन रखे थे। एक सुन्दर बालक (सोमदत्त) उन बर्तनों में पड़ी जूठन से अपनी क्षुधा शान्त कर रहा था । उसी समय एक मुनिराज अपने शिष्य के साथ वहाँ से निकलते हैं । उस बालक को देखकर वे शिष्य से कहते हैं - यह बालक गुणपाल का जामाता होगा । मुनिराज उसे पूर्व जन्म का वृत्तान्त बतलाते हैं -
अवन्ती प्रदेश में शिप्रा नदी के किनारे शिशपा नगरी में मृगसेन धीवर रहता था। उसकी पत्नी का नाम घण्टा था । एक बार वह जाल लेकर मछलियाँ पकड़ने जा रहा था। मार्ग में अवन्ती पार्श्वमन्दिर में मुनिराज के दर्शन करता है और उनसे धर्म का उपदेश सुनता है । वह उनके उपदेश से प्रभावित हो आत्मोद्धार का मार्ग पूछता है और जाल में आयी पहली मछली को जीवित छोड़ने का नियम लेता है ।
मृगसेन नियम लेकर नदी तट पर जाता है और पानी में जाल डालता है । एक बड़ी मछली के जाल में आने पर उसे चिह्नित कर वापिस जल में छोड़ देता है । अब वह