Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
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मुख मुरझाना मुरझाना का मुख्यार्थ फूलों का संकुचित होना है, किन्तु मुख के प्रसंग में उदास या निराश हो जाने के अर्थ में प्रसिद्ध हो गया है; अतः इस सन्दर्भ में वह मुहावरा बन गया है ।
मुहावरों का भाषिक वैशिष्ट्रय
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मुहावरों में अनेक तथ्य घटनायें और अनुभूतियाँ संश्लिष्ट होती हैं, इसलिये वे परिमित शब्दों में अपरिमित भावों के बोधक होते हैं । लक्षणात्मक होने से उनमें वैचित्र्योपादन की क्षमता तथा व्यजंकता के कारण भावानुभूति कराने की सामर्थ्य होती है जिससे अभिव्यक्ति रुचिकर एवं आकर्षक हो जाती है । वे दैनिक अनुभूतियों से सम्बद्ध होते हैं अतः उनके द्वारा सूक्ष्म अर्थ सरलतया बोधगम्य हो जाता है ।
मुहावरों के कई रूप होते हैं । जैसे वक्रक्रियात्मक, वक्रविशेषणात्मक, अनुभावात्मक, निदर्शनात्मक, प्रतीकात्मक, रूपकात्मक, उपमात्मक आदि । अतः इनसे व्यक्ति की बौद्धिक एवं चारित्रिक विशेषतायें, संवेगात्मक दशा, सुख-दुख, द्वन्द्व, संशयादि से ग्रस्त मनःस्थिति, हृदयगत अभिप्राय तथा वस्तुओं एवं घटनाओं का हृदयस्पर्शी स्वरूप प्रतिभासित हो जाता है । " वह बड़ा क्रोधी है" ऐसा कहने से मनुष्य के क्रोधात्मक स्तर का वैसा प्रतिभास नहीं होता, जैसा " वह तो जल्लाद है" कहने से होता है । अतः वस्तुस्थिति के प्रतिभासक होने के कारण मुहावरे अत्यन्त हृदयस्पर्शी होते हैं ।
जयोदय में मुहावरे
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महाकवि ने जयोदय में मुहावरों का प्रयोग किया है जिससे भाषा लाक्षणिक एवं व्यंजक बन गयी है । भाषाप्रवाह में सजीवता, सशक्तता और चित्तस्पर्शिता के गुण आ गये हैं । सौन्दर्यातिशय, प्रभावातिशय एवं चित्रात्मकता की सृष्टि हुई है । भावावेश, पात्रों के मनोभावों तथा मनोदशाओं की प्रभावशाली अभिव्यंजना हो सकी है ।
जयोदय में प्रयुक्त मुहावरों को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है - वक्रक्रियात्मक मुहावरे, वक्रविशेषणात्मक मुहावरे, निदर्शनात्मक मुहावरे, अनुभावात्मक मुहावरे, उपमात्मक मुहावरे एवं रूपकात्मक मुहावरे ।
वक्रक्रियात्मक मुहावरे
जब क्रिया का विशिष्ट शब्द के साथ असामान्यरूप से प्रयोग होता है तब वह रूद हो जाता है और वक्कक्रियात्मक मुहावरा कहलाता है । कवि ने इन मुहावरों के प्रयोग द्वारा