Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन विरोधमूलक अलंकार
इस वर्ग में जो अलंकार आते हैं उनमें विभावना और विशेषोक्ति के द्वारा अनभिहित कारण का प्रभावातिशय व्यंजित किया जाता है । विरोधाभास, विषम एवं अधिक अलंकारों से प्रस्तुत वस्तु की दशा, गुण, चरित्र आदि की गंभीरता, उच्चता, लोकोत्तरता आदि व्यंजित होते हैं । विशेष अलंकार प्रस्तुत. वस्तु की लोकोत्तरता, प्रभावातिरेक, बहुमुखी उपकारकता आदि घोतित करता है । “अतद्गुण" से भी वस्तु की प्रभावशालिता या अप्रभावशालिता व्यंजित होती है। मालात्मक (शृंखलात्मक) अलंकार
दीपक, यथासंख्य, परिसंख्या, परिकर, समुच्चय, कारणमाला, सार तथा एकावली मालात्मक अलंकार हैं, क्योंकि इनमें एक वस्तु की अनेक क्रियाओं या गुणों का वर्णन (कारक दीपक), एक क्रिया वाले अनेक कारकों का वर्णन (क्रिया दीपक), एक कार्य के अनेक कारणों का वर्णन या एक धर्म वाले अनेक पदार्थों का वर्णन (समुच्चय), एक वस्तु की अनेक विशेषताओं का वर्णन या एक जैसे अनेक तथ्यों का वर्णन (परिसंख्या, परिकर) तथा परस्पर सम्बद्ध अनेक पदार्थों की विशेषताओं का वर्णन (कारणमाला, सार, एकावली) होता है । एक वस्तु की अनेक क्रियाओं या गुणों के वर्णन से उसकी दशा विशेष की गम्भीरता, गुणाधिक्य अथवा महिमातिशय की अभिव्यक्ति होती है । एक कार्य के अनेक कारणों के वर्णन से कार्य की दुर्निवारिता, प्रभावातिशय, चरित की लोकोत्तरता आदि व्यंजित होते हैं। "कारणमाला" से कार्य का मूलकारण, “सार" अलंकार से सारतम वस्तु तथा “एकावली" से वस्तु का सौन्दर्यातिशय या सौन्दर्याधायक हेतुओं की व्यंजना होती है । “सहोक्ति" और "विनोक्ति" भी मालात्मक अलंकार हैं। आक्षेपात्मक अलंकार
यह एक ही है "आप अलंकार" । इसमें आक्षेपोक्ति (निषेधोक्ति) द्वारा विशेष अर्थ व्यंजित किया जाता है। पूर्वापरस्थितिवर्णनात्मक अलंकार ___ यह भी एक ही है । उसका नाम है पर्याय अलंकार । यह भी विभिन्न अर्थों का व्यंजक है, जैसे निम्न श्लोक में दुष्टों के वचन की अत्यन्त पीडाकारकता व्यंजित होती है -
१. आक्षेपेऽपि व्यङ्ग्यविशेषाक्षेपिणोऽपि वाच्यस्यैव चारुत्वं प्राधान्येन वाक्यार्थ आक्षेपोक्तिसामुदिव
ज्ञायते । - ध्वन्यालोक, १/१३