Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन स्वागत करते हैं एवं आदर-सम्मान से उन्हें सन्तुष्ट करते हैं । जयकुमार उनसे कुशलक्षेम पूछते हैं । तदनन्तर उनसे स्नेहमयी विदा लेकर पुनः यात्रा प्रारम्भ करते हैं ।
हस्तिनापुर पहुँचने पर जयकुमार एवं नव-वधू सुलोचना का प्रजा वर्ग एवं मन्त्री वर्ग सुस्वागत करते हैं । महिला वर्ग राजमहल में पहुँचकर नववधु सुलोचना के मुख का अवलोकन करती हैं और आनन्दित होती हैं । नववधू के स्वागत में महिलाएँ मंगलगीत गाती हैं ।
___ जयकुमार अपने साले हेमांगद आदि के समक्ष सुलोचना के मस्तक पर पट्टराज्ञी का पट्ट बांधकर “प्रधान महिषी' के पद से सम्मानित करते हैं । इससे सुलोचना के भाई प्रसन्न होते हैं और जयकुमार के इस कार्य की प्रासा करते हैं | जयकुमार हेमांगद आदि के साथ गूढार्थ पूर्वार्ध और गूढार्थ परार्ध से युक्त व्यर्थक युक्तियों के द्वारा हास-परिहास, नगर भ्रमण, विनोद गोष्ठी करते हैं । बहुत समय बीतने पर हेमांगद आदि अपने बहनोई से काशी जाने की अनुमति लेते हैं । जयकुमार उन्हें रत्न, आभूषण इत्यादि उपहार देते हैं। वे जयकुमार को सविनय प्रणाम कर हस्तिनापुर से प्रस्थान करते हैं । काशी पहुँचकर अपने पिता श्री को बहिन की सुख-समृद्धि के समाचार से अवगत कराते हैं । राजा अकम्पन अपने गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों से मुक्त होकर आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर होते हैं । द्वाविंशतितम सर्ग
जयकुमार और सुलोचना गृहस्थधर्म एवं राजधर्म का निर्वाह करते हुए सुखपूर्वक अपना समय बिताते हैं। त्रयोविंशतितम सर्ग
____ जयकुमार राज्य भार अपने अनुज विजय को सौंपते हैं और स्वयं प्रजा के हितकार्य में संलग्न हो जाते हैं । एक दिन राजा जयकुमार जब अपनी रानियों के साथ महल की छत
पर बैठे थे, तभी उन्होंने आकाश मार्ग से जाते हुए विद्याधर के विमान को देखा, इससे उन्हें • जातिस्मरण होता है और वे "प्रभावती" कहकर मूर्छित हो जाते हैं । इसी अवसर पर सुलोचना भी आकाश मार्ग में कपोत युगल को देख “हा रतिवर" शब्द कहकर मूर्छित हो जाती हैं । शीतलोपचार से दोनों ही सचेत होते हैं परन्तु वहाँ उपस्थित सपत्नियाँ सुलोचना के चरित्र पर सन्देह करती हैं । चैतन्य अवस्था प्राप्त होने पर जयकुमार व सुलोचना दोनों को अवधिज्ञान होता है । जयकुमार अपने जन्मान्तर का वृत्तान्त कहने के लिए सुलोचना को प्रेरित करते हैं । सुलोचना द्वारा वर्णित पूर्व जन्म का कथानक इस प्रकार है -