Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
संस्कृत कृतियाँ जपोदय महाकाव्य
____ अट्ठाइस सर्गों वाला यह विशाल महाकाव्य है।' इस महाकाव्य का सारांश अग्रिम सर्ग में दिया जावेगा। वीरोदय महाकाव्य
महाकवि भूरामलजी ने वीरोदय महाकाव्य में तीर्थंकर महावीर का जीवनचरित्र प्रस्तुत किया है । इस काव्य में बाईस सर्ग हैं । प्रत्येक सर्ग का संक्षिप्त कथ्य इस प्रकार है
____काव्य के प्रथम सर्ग में महाकवि भूरामल जी ने महावीर के जन्म से पूर्व भारत की सामाजिक एवं धार्मिक दुर्दशा का मार्मिक चित्रण किया है ।
द्वितीय सर्ग में बतलाया गया है कि भारतवर्ष के छह खण्ड हैं। इनमें आर्यखण्ड सर्वोत्तम है । इसी आर्य खण्ड में स्वर्गापम विदेह देश है । इस देश में कुण्डनपुर नामक नगर सर्वाधिक समृद्धशाली है।
तृतीय सर्ग में कुण्डनपुर के शासक सिद्धार्थ एवं रानी प्रियकारिणी के रूप-सौन्दर्य, गुणवैशिष्ट्य आदि का मनोहारी चित्रण हुआ है।
चतुर्थ सर्ग में कवि ने आनन्ददायक पावस ऋतु का वर्णन किया है । इसी ऋतु के सुखद वातावरण में एक दिन रात्रि के अन्तिम प्रहर में रानी प्रियकारिणी सोलह स्वप्न देखती है। इन सोलह स्वप्नों में वे निम्नलिखित वस्तुयें देखती हैं -
ऐरावत हाथी, वृषभ, सिंह, गजों के द्वारा अभिषेक की जाती लक्ष्मी, दो मालाएं जिन पर मार गुंजन कर रहे हैं, चन्द्रमा, सूर्य, जल से परिपूर्ण दो कलश, जल में कीड़ा करती हुई दो मछलियाँ, एक हजार आठ कमलों से युक्त सरोवर, समुद्र, सिंहासन, देवविमान, मन्दिर, रत्नों की राशि एवं निधूम-अग्नि ।
प्रातःकाल वे अपने पति से स्वप्नों का अर्थ पूछती हैं । वे स्वप्न में दृश्यमान् प्रत्येक वस्तु का पृथक्-पृथक् अर्थ बतलाते हैं, जिसका सारांश यह है कि तुम्हारे गर्भ से एक ऐसा पुत्र अवतरित होगा जो धीर, वीर, गम्भीर, गुणवान्, महादानी एवं जगत् का प्रिय होगा । १. (अ) इस ग्रन्थ का दूसरा नाम सुलोचना स्वयंवर भी है । जयोदय. २८/१०८ (ब) इस ग्रन्थ का सृजन श्रावण सुदी पूर्णिमा, विक्रम संवत् १९८३ (सन् १९२६) को हुआ था ।
जयोदय २८/१०९