Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन निर्माण करूँगा जिसे देखकर जैनेतर विद्वान् भी “दाँतों तले अंगुली दबा लें ।' साहित्य सर्जना
अपने संकल्प को कार्य रूप देने हेतु भूरामल जी व्यवसाय से उदासीन हो गये । व्यवसाय का कार्य छोटे भाईयों को सौंप कर वे पूर्ण रूपेण अध्ययन-अध्यापन और साहित्य-सृजन में जुट गये । उन्होंने अध्ययन और लेखन को ही अपनी दिनचर्या बना लिया। वे दिन में एक बार ही शुद्ध सात्त्विक भोजन करने लगे। इसी बीच उनको दाँता (रामगढ़) राजस्थान में संस्कृत अध्यापन के लिए बुलाया गया । वे वहाँ जाकर परमार्थ भाव से अध्यापन कार्य करने लगे।
इस प्रकार अध्यापन एवं अध्ययन कार्य करते हुए संस्कृत एवं हिन्दी ग्रन्थों की रचना कर इन भाषाओं के साहित्य को विपुल समृद्धि प्रदान की । उनके द्वारा रचित ग्रन्थ इस प्रकार हैं -
आचार्य श्रीमानसागर जी के गन्ध
संस्कृत ग्रन्थ
हिन्दी अन्य
साहित्य अन्य दार्शनिक ग्रन्थ १- जयोदय महाकाव्य १. सम्यक्त्वसार शतक २- वीरोदय महाकाव्य २- प्रवचनसार प्रतिरूपक ३. सुदर्शनोदय महाकाव्य ४- भद्रोदय महाकाव्य (समुद्रदत्त चरित्र) ५- दयोदय चम्पू काव्य ६- मुनि मनोरञ्जनाशीति (मुक्तक काव्य) ७- ऋषि कैसा होता है (मुक्तक काव्य)
साहित्य अन्य १- ऋषभावतार २- गुणसुन्दर वृतान्त ३- भाग्योदय
दार्शनिक ग्रन्य १- जैन विवाह विधि २. तत्वार्थसूत्र टीका ३- कर्तव्यपथ प्रदर्शन ४- विवेकोदय ५- सचित्त विवेचन ६- देवागम स्तोत्र का
पद्यानुवाद ७- नियमसार का पद्यानुवाद ८- अष्टपाहुड का पद्यानुवाद ९. पवित्र मानव जीवन १०- स्वामी कुंदकुंद और
सनातन जैनधर्म ११- मानव धर्म १२- समयसार तात्पर्य
वृत्ति टीका
१. विद्याधर से विद्यासागर, पृष्ठ १५१-१५२ २. वीरशासन के प्रभावक आचार्य, पृष्ठ - २७० ३. बाहुबली सन्देश, अद्वितीय श्रमण, पृष्ठ-३६ ४. वही, पृष्ठ ३७ ५. कर्तव्यपथ प्रदर्शन, आचार्य श्री ज्ञानसागरजी का जीवन वृत्तान्त, पृष्ठ - ४