Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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टीका ग्रन्थ महाकवि आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ने मुनि अवस्था में लिखा
था।
23. तत्त्वार्थ सूत्र
जैन दर्शन में संस्कृत सूत्र रूप यह ग्रन्थ प्रथम माना जाता है । सारे भारतवर्ष में दशलक्षण पर्व में इसका वाचन होता है । स्वाध्याय प्रेमियों पर इस ग्रन्थ ने बहुत बड़ा उपकार किया है । तत्त्वार्थ सूत्र में कथित विषय वस्तु को अन्य जैनागम, षट्खड़ागम् श्लोक वार्तिक, राजवार्तिक, गोम्मटसार आदि अनेक ग्रन्थों को अपनी टीका में उद्धृत किया है । इनकी हिन्दी टीका पढ़ने से अनेक ग्रन्थों की विषय सामग्री सहज ही उपलब्ध ही जाती है। यह टीका ग्रन्थ महाकवि आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने क्षुल्लक अवस्था में लिखी थी। उस समय आपका नाम क्षु. ज्ञान भूषण
था ।
24. मानव धर्म
जैन दर्शन के प्रसिद्ध उद्भट तार्किक आचार्य समन्तभद्र द्वारा रचित रत्नकरण्ड श्रावकाचार के श्लोकों पर मानव धर्म नाम से हिन्दी टीका लिखी गई है । आचार्य समन्तभद्र स्वामी के श्लोकों का अर्थ तो प्रकट किया ही है, साथ ही उस अर्थ के साथ वर्तमान की सामाजिक समस्याओं के निराकरण हेतु छोटे-छोटे उदाहरण . देकर समन्तभद्र आचार्य के हृदय को उजागर किया है । इस पुस्तक को पढ़ते समय ऐसा लगता है जैसे लेखक समन्तभद्र स्वामी के श्लोकों का प्रवचन कर रहा हो अर्थात् प्रवचन शैली में यह पुस्तक लिखी गई है । यह पुस्तक प्रत्येक मानव के लिए पठनीय है। इसके कई संस्करण विभिन्न स्थानों से निकल चुके हैं । इसका कन्नड़, मराठी एवं अंग्रेजी अनुवाद भी किया जा रहा है । रत्नकरण्ड श्रावकाचार के 150 श्लोकों पर हिन्दी व्याख्या के रूप में प्रकाशित है। यह टीका ग्रन्थ महाकवि ज्ञानसागर महाराज ने दीक्षा के पूर्व लिखा था, उस समय आपका नाम ब्रह्मचारी पंडित भूरामल शास्त्री था ।
25. विवेकोदय
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आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी रचित प्रसिद्ध समयसार की गाथाओं पर हिन्दी गद्य-पद्यात्मक व्याख्या लेखक द्वारा इस ग्रन्थ में की गई है। संक्षिप्त रूप में समयसार के हृदय को समझाने वाला यह विवेकोदय नाम का ग्रन्थ लगभग एक सौ साठ
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