Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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| वर्तमान में कोई भी कार्य किया जाता है तो कुन्द-कुन्द आम्नाय द्वारा किया जाता है, ऐसा कहा जाता है।
कुन्द-कुन्द स्वामी ने इतिहासकारों के अनुसार चौरासी पाहुड़ लिखे हैं, लेकिन सम्पूर्ण पाहुड़ वर्तमान में उपलब्ध नहीं होते हैं । जितने भी पाहुड़ उपलब्ध होते हैं, उनमें से तीन ग्रन्थ (पाहुड़) मुख्य माने जाते हैं । इन तीन में से भी समयसार ग्रन्थ, ग्रन्थराज माना जाता है । इस ग्रन्थ पर आचार्य अमृतचन्द्र-सूरि ने आत्मख्याति नाम की दण्डान्वय टीका लिखी है एवं जयसेन स्वामी ने तात्पर्य वृत्ति नाम की खण्डान्वय टीका लिखी है । इन टीकाओं को लेकर कुन्द-कुन्द स्वामी की गाथाओं पर अनेक विद्वानों ने हिन्दी की टीका भी लिखी है लेकिन विद्वान् आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी के हृदय को प्रकट नहीं कर सके । टीकाओं में विशेषार्थों के माध्यम से अपनी भावनाओं को हिन्दी टीकाकारों ने समविष्ट किया है । इन हिन्दी टीकाकारों ने आचार्य अमृतचन्द्र सुंरि एवं जयसेन स्वामी की भावनाओं की भी उपेक्षा की है।
आचार्य ज्ञानसागर महाराज एक क्रान्तिकारी निष्पक्ष लेखक थे। एक दार्शनिक व्यक्ति स्वभावानुसार मूल आचार्यों की भावनाओं की उपेक्षा कैसे बर्दाश्त कर सकता है । परिणामस्वरुप जयसेन स्वामी, जो कि वस्ततः आगम एवम् कुन्द-कुन्द स्वामी | की भावनाओं को पूर्णतः प्रदर्शित करते हैं । यदि आचार्य जयसेन न होते तो कुन्दकुन्द स्वामी का समयसार है, यह भी ज्ञात नहीं होते अर्थात् आचार्य कुन्द-कुन्द के नाम को उजागर करने वाले जयसेन स्वामी द्वारा लिखित तात्पर्य वृत्ति नाम की टीका को आधार बनाकर समयसार की हिन्दी टीका आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने लिखी है । इस टीका में भी विशेषार्थ दिए गए हैं जो कि तार्किक आगमिक एवम् कुन्द-कुन्द स्वामी के हृदय को प्रकट करने वाले हैं। | स्वाध्याय बन्धुओं को जिन्हें संस्कृत्त नहीं आती है, उन्हें यह हिन्दी टीका का स्वाध्याय करके अपनी मिथ्या धारणाओं का विमोचन कर वास्तविक तत्त्व निर्णय कर लेना चाहिए । विद्वानों को निष्पक्ष रूप से एवम् पूर्वाग्रहों का त्याग करके इस टीका का आलोडन करना चाहिए । यह लगभग तीन सौ नब्बे पृष्ठों में सजिल्द प्रकाशित है । इस ग्रन्थ में चार सौ उन्तालिस गाथायें है । जिन पर जयसेन स्वामी द्वारा रजित संस्कृत टीका हैं । मूल गाथाओं का पद्यानुवाद आचार्य विद्यासागर जी एवम् गद्य की हिन्दी टीका आचार्य ज्ञानसागर जी द्वारा लिखित है । इस ग्रन्थ के कई प्रकाशन पूर्व में भी भिन्न-भिन्न स्थानों से प्रकाशित किये जा चुके हैं । यह