Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
सम्मतीपप्रतिस् • अथाभ्यन्तरतृतीयमंडलस्य चारं प्रष्टुमाह-'से णिक्खममाणे सुरिए दोच्चं सीत्यादि, 'से णिक्खममाणे सरिए अथानन्तरं द्वितीयमण्डलचारसमाप्त्यनन्तरं निष्क्रामन् अपसर्पन सूर्यः 'दोच्चंसि ओरत्तंसि' द्वितीये अहोरात्र प्रस्तुनायनापेक्षया द्वितीयमंडले इत्यर्थः 'अभंतरतच्चं मंडलं उपसंक्रमित्ता' अभ्यन्तरं तृतीयमण्डलमुपसंक्रम्य संप्राप्य 'चारं चरह' चारं गतिं चरवि करोति 'जया णं भंते बरिए' यदा खलु भदन्त सूर्यः 'अन्तरतचं मंडलं उपसंकमित्ता चारं चरइ' अभ्यन्तात्तोयमंडलमुपसंक्रम्य चारं चरति 'तयाणं एगमेगेण मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ' तदा तस्मिन् तृतीयमंडलसंक्रमणकाळे खलु एकैकेन मुहते। फियत् प्रमाणक क्षेत्रं गच्छतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमे' त्यादि 'गोगमा' हे गौतम ! 'पंच पंचजोयणसहस्साई' पंव पंच योजनसहस्राणि 'दोण्णि य वावण्णे नोयणसए' इकसठ होता है। उससे शेष राशि का भाग करने पर साठिया सतावन:: भाग प्राप्त होता है साठ भाग के उन्नीसवा भाग सत्क सत्तरवां भाग
अव अभ्यन्तर के तीसरे मंडल की गति को पूछने के हेतुसे कहते हैं'से णिक्खममणे मृरिए' दूसरे मंडलकी गति समाप्त होने पर गमन करताहुआ सूर्य 'दोच्चंसि अहोरत्तसि' दूसरे अहोरात्र में अर्थात् प्रस्तुत अयनकी अपेक्षासे दूसरे मंडल में 'अभंतरं तच्चं मंडलं उपसंकमित्ता अभ्यन्तर के तीसरे मंडल में जाकर के 'चारं चरई गति करता है, 'जयाणंभंते! सूरिए हे भदन्त जब सूर्य 'अम्भतरतच्चं मंडल उवसंकमित्त चारं चरई' अभ्यन्तर के तीसरे मंडल में जाकर गति करता है 'तयाणं एगमेगेण मुहत्तणं केवइयं खेत्तं गच्छद उस समय अर्थात् तीसरे मंडल के संक्रमण काल में एक एक मुहूर्त में कितने प्रमाण का क्षेत्र में गमन करता है ? इसप्रश्नके उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं-'गोयमा !। हे गौतम ! 'पंच पंच जोयणसहस्साई पांच पांच हजार योजन રાશીને સાઈઠથી અપવર્તન કરવાથી એકસઠ થાય છે. તેનાથી શેષ રાશીને ભાગ કરવાથી સાઠિયા 59 ભાગ મળી જાય છે. સાઈઠ ભાગના ઓગણીસમો ભાગ સત્ય એક સાઠિયા ભાગ
के सत्य-तरात्री भजनी गति ५४वाना उतथी डे 2-से णिक्खममाणे सूरिए भीM भजनी गति समाप्त गया पछी मन ४रता सूर्य 'दोच्चंसि अहोरत्तसि' मी अडारामा अर्थात् प्रस्तुत मयाननी अपेक्षाथी मी ममी 'अभंतर तच्चं मंडलं उवस कमित्ता' मास्तरना alan भाभा न 'चार चरई' गति ४२ छे. 'जयाणं भंते ! मूरिए' भगवन् । स्यारे सूर्य' 'अभंतरतच्चं मंडल उवसंकमित्ता चार चरई' मन्त२ना जीत में SR गति ४२ छ. 'तया णं एगमेगेण मुहुत्तणं केवइय ત્તિ ઋ એ સમયે અર્થાત્ ત્રીજા મંડળના સંક્રમણ કાળમાં એક એક મુહૂર્તમાં ४सा प्रभावामा क्षेत्र मन ४२ छ ? या प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ -'गोयमा ! ॐ गौतम । 'पंच पंच जोयणसहस्साई' पार पांय तर यापन कोण्णिय बावण्णे