Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 551
________________ ५३६ जम्बूद्वीपमहसिको इत्यादि, 'गोयमा ! हे गौतम ! 'दव्वट्टयाए सासए' द्रव्यार्थत्या शाश्वतः-द्रव्यरूपेण जम्मूद्वीपः शाश्वत:-सर्वकालभावी, द्रव्यस्यान्वयित्वेन सर्वदाऽवस्थानसंभवात् 'वण्णपज्जवेहि, गंधपज्जवेहि, रसपज वेहि, फासपज्जवेहिं असासए' वर्णपर्यायैः-नीलपीतादि वर्णपर्यायैः, गन्धपर्यायैः रसपर्यायैः स्पर्शपर्यायै थाशाश्वतो जम्बूद्वीपः, 'से' तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ सिय सासए सिय असासए' तत्तेनार्थेन एतस्मादेव कारणात् हे गौतम! एवं-यथोक्तप्रकारेणो. च्यते, स्यात् शाश्वतः स्यादशाश्वतः यस्माद द्रव्यरूपेण जम्बूद्वीपोऽयं सर्वकालावस्थायितया शाश्वतः वर्णादिपर्यायमपेक्ष्य प्रतिक्षणम् पूर्वापूर्वपरिणामकतया किञ्चित्कालस्थायितया अशाश्वत इत्ययः । एवं च शाश्वताशाशतो घटादिः सर्वथा विनश्वरस्वभावो दृश्यते तद्वद् विरोधी होने के कारण कैसे रह सकते हैं, तो इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं'गोयमा ! दवट्टयाए सासए' हे गौतम ! एक अधिकरण में इन दोनों धर्मों का रहना किसी अपेक्षा से बनजाता है और वह अपेक्षा द्रव्याथिकनय और पर्या यार्थिक नय को मुख्यगौण करके बन जाती है यही बात सूत्रकार ने 'दबट्टयाए सासए' इस सूत्र द्वारा प्रकट की है, जम्बूद्वीप को जो शाश्वत कहा गया है वह द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा लेकर कहा गया है क्यों कि द्रव्याथिक नय' पर्याय को गौण करके केवल द्रव्य को ही विषय करता है और प्रत्येक पदार्थ द्रव्य की अपेक्षा नित्य होता कहा गया है द्रव्य का स्वभाव अपनी पर्यायों में अन्वयी होना है अत: अन्वयी होने से द्रव्य का सदा अवस्थान बना रहता है, तथा 'वण्णपज्जवेहिं, गंधपनवेहिं, रसपनवेहि, फासपज्जवेहि असासए' जम्बूद्वीप वर्ण पर्यायों की अपेक्षा, रसर्यायों की अपेक्षा, और स्पर्श पर्यायों की अपेक्षा अशाश्वत-सदा काल भावी नहीं है क्यों कि द्रव्याश्रित रूपादि पर्यायों में प्रति क्षण परिणमन होता रहता है 'से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ सिय सासए અધિ કરવામાં આ બંને ધર્મોનું રહેવું કેઈ અપેક્ષાથી બની જાય છે અને આ અપેક્ષા વ્યાર્થિનય અને પર્યાયાર્થિકનયને મુખ્ય ગૌણ કરીને બની જાય છે. આજ पात 'सूबारे 'दबयाए सासए' से सूत्र वा ४८ ४२८ छ म्यूद्वीप २ शाश्वत કહેવામાં આવ્યું છે તે દ્રવ્યાર્થિકનયની અપેક્ષા લઈને કહેવામાં આવ્યું છે કારણ કે દ્રવ્યાકિનય પર્યાયને ગૌણ કરીને માત્ર દ્રવ્યને જ વિષય બનાવે છે અને પ્રત્યેક પદાર્થ દ્રવ્યની અપેક્ષા નિત્ય હોવાનું કહેવામાં આવ્યું છે. દ્રવ્યને સવભાવ પિતાના પર્યામાં અન્વયી હોય છે અથી અન્વયી હોવાથી દ્રવ્યનું હંમેશાં અવસ્થાન બનેલું २७ छ, 'वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहिं असासए' स्मूदी५ वर्षપર્યાની અપેક્ષા, ગંધ પર્યાની અપેક્ષા, રસપર્યાની અપેક્ષા અને સ્પર્શ પર્યાની અપેક્ષા અશાશ્વત–સદાકાલ-ભાવી નથી-કારણ કે દ્રવ્યાશ્રિત રૂપાદિ પર્યામાં પ્રતિક્ષણે पारयुमन ४ २९ छ, 'से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं कुच्चइ सिय सासए सिय प्रसासए'

Loading...

Page Navigation
1 ... 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569