Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 560
________________ प्रकालिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. ३४ जम्बूद्वीपइतिनामकरणकारणनिरूपणम् ५४५ / पुष्पैः सर्वदैव शोभमानाः 'आव पिंडिममंजरीवडेंसगधरा' याक्त् विण्डिममञ्जर्यवतंसकधराः यावत्पदात् 'णिच्चं माइया णिच्चलवइया णिच्चं थवइया जाव णिच्चं कुसुमिय माइय लवइय थवाय गुलइय गोच्छइयमलिय जुवलिय विणमिय सुविभत्त' एतेषां ग्रहणं भवति, उक्तवर्णक विशिष्टाः जम्बूवृक्षाः, 'सिरिए अईव २ उपसोभेमाणा चिटंति' श्रिया-शोभया बनलक्ष्म्या वा अतीव-अतिशयेन उपशोभमाना: फलपुष्पादिभिर्विलसन्तस्तिष्ठन्ति, इदं च सर्वदा कुसुमि. तत्वादिकं विशेषणं जम्बूवृक्षाणा मुत्तर कुरुक्षेत्रापेक्षया ज्ञातव्यम् अन्यथा जम्बूवृक्षाणामाषाढमासे एव पुष्पफलादिमत्वेन नित्यमिति विशेषणानां प्रत्यक्षवाधप्रसंगात् एतावता जम्बूमिया' सर्वदा पुष्पों से भरे हुए रहते हैं क्यों कि यहाँ जम्बुवृक्षा की ही प्रधानता कही गई है दूसरे वृक्षों की नहीं उनकी तो गौणता ही जाननी चाहिये अन्यथा यदि अन्यवृक्षों के सद्भाव को लेकर इस द्वीप में जम्बूद्वीप पद की प्रवृत्ति का निमित्त माना जावे तो यह कथन असंगत ही हो जायेगा। 'जाव पिंडिममंजरिबडे सगधरा सिरीए अईवर उवसोभेमाणा चिट्ठति'यहां यावत्पद से 'णिचं माइया, णिच्चं लवड्या,णिच्चं थवइया, जाव णिच्चं कुसुमियमाइय लवइ थवइय गुलइय गोच्छइय मलिय जुयलिय निणमिय सुविभत्त' इस पाठ का संग्रह हुआ है-इन सब पूर्वोक्त पदों का व्याख्यान हम पहिले वनखण्ड के वर्णन में कर चुके हैं । अतः यहीं से इसे देखलेना चाहिये इस वर्णन से विशिष्ट जम्बूवृक्ष शोभा से अथवा वनलक्ष्मी से अत्यन्त शोभित होते रहते हैं यहां जो सर्वदा कुसुमितत्वादिक विशेषण जम्बूवृक्षों के वर्णन में दिये गये हैं वे उत्तर कुरुक्षेत्र गत जम्बूवृक्षों की अपेक्षा से ही जानना चाहिये, क्योंकि इतरक्षेत्र गत जम्बूवृक्ष आषाढ मास में ही पुष्पफलादि वाले होते हैं अतः नित्य आदि विशेषणों में प्रत्यक्ष वाधा का वृक्ष 'णिच्चं कुसुमिया' सा पाथी सहायai २९ छे ४।२९ माडीया - વૃક્ષેની જ વિશેષતા કહેવામાં આવી છે-બીજા વૃક્ષની નહીં તેમની તે ગૌણતા જ જાણવી અન્યથા જે બીજા વૃક્ષોના સદુભાવને લઈને આ દ્વીપમાં જમ્બુદ્વીપતા પદની પ્રવૃત્તિનું निमित्त मानवामी आता मा ४थन मसत र समित थशे. 'जाय पिंडिम मंजरिवडे सगधरा सिरीए अईव २ बसोभेमाणा चिटुंति' मही 4 4.५४थी "णिच्चं माइया, णिच्चं लवइया, णिच्चं थवइया, जाव णिच्चं कुसुमिय माइय लवइय थवइय गुलइय गोच्छइय मलि यजुवलिय विणप्रिय सुविभत' 2 3 3 थय। छ मा समां पूर्वरित पहानु વ્યાખ્યાન અમે પ્રથમ વનખડના વર્ણનમાં કરી ગયા છીએ આથી તેમાંથી જ આ બધું જોઈ લેવા ભલામણ છે. આ વર્ણકથી વિશિષ્ટ જબૂવૃક્ષ શેભાથી અથવા વનલકમથી અત્યન્ત શેબિત થતાં રહે છે અને જે સર્વદા કુસુમિતત્વાદિક વિશેષણ જબૂવૃક્ષોના વર્ણનમાં આપવામાં આવ્યા છે. તેઓ ઉત્તરકુરૂ ક્ષેત્રગત જંબૂવૃક્ષની અપેક્ષથી સમજવું કેમકે ઈતર ક્ષેત્રગત જંબૂવૃક્ષ અષાઢમાસમાં જ પુષ્પફળાદિવાળા હોય છે આથી નિત્ય

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