Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जम्बूद्वीपप्रमतिसून तत्थ देसे वहि तहिं बहवे जरुक्खा जंवूषणा, जंवूवणसंडा णिच्चं कुसुमिया जाव पिडिम मंजरी वडेंसगधरा सिरीए अईव अईव उवसोभेमाणा चिट्ठति, जंबूए य मुदंसणाए अणाढिए णामदेवे महडिए जाव पलियोवमहिइए परिवाइ, से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चा जंबुद्दीवे' तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते जम्बूद्वीपो द्वीप इति, गौतम ! जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे तत्र देशे तत्र तत्र बहवो जम्बूवृक्षाः, जम्बूवनानि जम्बूबनपण्डाः नित्यं कुसुमिता यावत् पिण्डिममञ्जरीवतंसकधराः श्रियाऽनीव प्रतीवोपशोभमानास्तिष्ठन्ति, जम्ब्वां च सुदर्शनायाम् अनाढयो नामदेवो महद्धिको यावत् पल्योपमस्थितिकः प्रतिवसति तत्तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते जम्बूद्वीपो द्वीप इतिच्छाया ॥ एवं प्रकारेण जम्बूद्वीपादिपदानामन्वर्थप्रतिपादन रूपोऽर्थः दृश्यते । तथाहेतु:-निमित्तं सोऽपि अस्मिन्नुपाङ्गे दृश्यते यथा-'पहूर्ण भंते ! चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडेंसए विमाणे चंदाए रायहाणीए सभाए मुहम्माए तुडिएणं सद्धि मइयाहयण गीयवाइय जाव दिव्याई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, गोयमा ! णो इणढे समडे' 'प्रभुः खलु भदन्त ! चन्द्रो ज्योतिष्केन्द्रो ज्योतिष्कराजः चन्द्रावतंसके जंबुद्दीवे दोघे ? गोयमा ! जंबु दीवे णं दीवे तत्य २ देसे तहिं २ वहवे जंबुरुक्खा , जंबूवणा, जंबूवणसंडा णिच्चं कुसुमिया जाब पिंडिम मंजरी बडेमगधरा सिरीए अईवर उचसोभेमाणा चिटुंति, जंबूए य सुदंसणाए अणाढिए णामं देवे महडिए जाव पलिओवमहिइए परिवसह, से तेणटेणं गोयमा! एवं बुच्चइ जंबु. दीवे' इस पाठ का अर्थ पीछे लिखा चुका है। इस तरह से जंबूद्वीपादिक पदों का अन्यर्थ प्रतिपादकरूप अर्थ इसमें प्रकट किया गया है निमित्त-हेतु-वह भी इस उपाङ्ग में दिखाया गया है-जैसे 'पख णं भंते ! चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडेसए रायहाणीए सभाए सुहम्माए तुडिएणं सद्धि महया हय ण गीयवाइयजाव दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणे पिहरित्तए० गोयमा! णो इण समढे' इस पाठ का भी अर्थ पीछे लिखा जा चुका है, तथा यहां प्रतिपाद्य अर्थ के हेतु को प्रदत म छ म आश माही ४८ ४३वामा माछ-'से केणद्वेणं भंते ! एंव बुच्चइ, जंबुद्दोवे दीवे ? गोयमा ! जंबुद्दीवेणं दीवे तत्व २ देसे तहिं २ वहवे जंबुरुक्खा , जंबूवणा, जंबूवर्गसंडा णिच्चं कुसुमिया जाव पिडिम मंजरी वडेंसगवरा सिरीए अईव २ उवसोभेमाणा चिट्ठति, जंबूए य सुदसणाए अणाढिए णाम देवे महडूढिए जाव पलिओवमद्विइए परिवसइ, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जंबुद्दीवे' मा : म अन्यत्र समा गये छ. मावी રીતે જંબુદ્ધી પાદિક પદેને અન્યર્થ પ્રતિપાદકરૂપ અર્થ આની અંદર પ્રકટ કરવામાં આવ્યું छ. निमित्त-डेतु-मा ५ मा Sinमा मतापामा मायु छ रेभ.-'पहू णं भंते ! चंदे जोइसिदे जोइसरोया चंवडेंसर विमाणे चंदाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए तुडिएणं सद्धि मह राहय णट्ट गीयवाइय जाव दिव्याई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए० गोयमा! णो इणद्वे झुमडे' मा पानि म प म मामा मात्री गये छ तथा मडी प्रतिपाय
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