Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 559
________________ अम्वीपमासियो प्रज्ञापयति, एवं प्ररूपयति जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिनामेति आर्यः। अध्ययनमर्थ च हेतुं च प्रश्नं च कारणं च व्याकरणं च भूयो भूय उपदर्शयतीति ब्रवीमि ॥ सू० ३४ ॥ टीका-'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ जंबुद्दीचे दीये' तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते जम्बूद्वीपो द्वीपः, हे भदन्त ! एतस्य द्वीपस्य जम्बूद्वीप इतिनामकरणे को हेतु रितिप्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जंधुदीवेणं दीवे जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे 'तत्थर देसे' तत्र तत्र देशे 'तहि तर्हि' तत्र तत्र प्रदेशे 'वह वहवोऽने के 'जंबाखा' जम्बूवृक्षाः एतन्नामक्रवनस्पतिविशेषा एकै रूपा विरलस्थितत्वात् 'जयूबणा' वहनि जम्बूधनानि जम्बूवृक्षा एव समूहमावेन स्थिता विद्यमाना अविरलस्थितत्वात्, एकनातीयवृक्षसमुदायोवनमिति, 'जंबूषणसंडा' जम्बूवनपण्डाः विजातीयवृक्षसमिलिताः जम्बूवृक्षसमूहाः विभिन्न जातीय वृक्षसमुदायो वनपण्ड इति, तत्रापि जम्बूवृक्षाणामेव प्राधान्यम् इतरवृक्षाणां तु गौणत्वमेव अन्यथा इतरवृक्षाणां जम्बूद्वीपपदप्रवृत्तिनिमित्तत्वेऽसंगत्यमेव स्यादिति ते जम्बूवृक्षाः कीदृशास्तत्राह-'णिचं' इत्यादि, 'णिचं कुसुमिया' नित्यम्-सर्वकालं कुमुमिता: 'सेकेणढणं भंते! एवं चुच्चइ जवुद्दोवे दीवे' इत्यादि। टीकार्थ-इस सूत्रद्वारा गौतमस्वामीने प्रभु से ऐसा पूछा है-'से केणटेणं भंते! एवं बुचह जंबुद्दीवे' हे भदन्त ! आप ऐला किस कारण से कहते हैं कि यह जंबुद्धीप नामका द्वीप है ? अर्थात् इस पर्वतविशेष का नाम जम्बूद्वीप ऐसा किस कारण से कहा गया है ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! जंबुद्दीवेणं दीवे तत्थ २ देसे तहिं २ बहवे जंबुरुक्खा' हे गौतम ! इस जम्बूद्वीप नाम के द्वीपमें उस उस देश में उस उस प्रदेश में अनेक जम्बूवृक्ष इस नामके वनस्पति विशेष, 'जम्बूयणा' अनेक जम्बूवृक्षों के पास पासमें रहे, हुए समूहरूप वन, एवं-'जंबू वण संडा' विजातीय वृक्षसमूह से संमिलित जम्बूवृक्षोंके हैं,एक जातीयधाले वृक्षों का सनुदाय जहां होना है उसका नाम वन है और विजातीय वृक्षोंसे संमिलित समुदाय जहां होता है उसका नाम वनषण्ड, है, ये सब जम्बृवृक्ष 'णिच्चं कुसु 'से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ जंबुद्दीवे दी।' त्यात Aथ-4 सूत्र द्वारा गीतभस्वामी प्रभुन मा प्रमाणे पूछयु छे-से केणटेणं भंते ! एवं. वुच्चइ जंबुद्दीवे दीवे' महन्त ! २५ मे ॥ ४॥२0 है। छ। भूદ્વીપ નામને દ્વીપ છે? અર્થાત આ પર્વત વિશેષનું નામ જંબુદ્વીપ એવું કયા કારણે डेवामा मान्यु छ ? मानवासमा प्रभु ४४ छ-'गोयमा ! जंबुद्दीवेणं दीवे तत्थ २ देसे, तहिं २ बहवे, जंबुरुक्खा' गौतम ! म सम्पूदी५ नामना द्वीपमा ते शमा तत प्रदेशमा भन: सूक्ष मा नामना वनस्पति विशेष, 'जम्बूवणा' भने हानी पासे पासे २९दा समूह३५ पन तथा 'जंबूवणसंडा' वितीय वृक्षसमस्या समलित જબૂવૃક્ષના છે, એક જાતીવાળા વૃક્ષને સમુદાય જ્યાં હોય છે તેનું નામ વન છે અને વિજાતીય વૃક્ષેથી સંમિલિત સમુદાય જ્યાં હૈય છે તેનું નામ વનષડ છે, આ બધાં

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