Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 555
________________ ४० जम्बूद्वीपतिसूत्रे जम्बूद्वीपस्य तेजसः परिणामेऽङ्गीक्रियमाणे कादाचित्कत्वं प्रसज्येत एवं वायोरतिचलत्वेन जम्बूद्वीपस्य वायुपरिणामत्वेऽङ्गीक्रियमाणे एतस्यापि चलत्वापत्तिरिति तयोः स्वत एव सन्देहाविषयत्वेन प्रश्नसूत्रे उपन्यासः कृत इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'पुढची परिणामे वि' पृथिवीपरिणामोऽपि, अयं जम्बूद्वीपः पर्वतादिमत्वात् 'पृथिव्याः परिणामरूपोऽपि भवति, तथा 'आउपरिणामे वि' अपरिणामोऽपि अयं जम्बूद्वीपो नदीहृदादिमत्वात् जलपरिणामरूपोपि स्वीक्रियते 'जीवपरिणामे वि' जीवपरिणामोऽपि, अयं जम्बूद्वीपो मुखवनादिषु वनस्पत्यादिमच्यात् जीवपरिणामोऽपि भवति, यद्यपि आईत - सिद्धान्ते पृथिव्यपकाय परिणामखग्रहणेनैव जोवपरिणामत्वं सिद्धम्, तथापि लोके पृथिवीजलयो जीवत्वस्यापवहारात् जीवपरिणामत्वस्य पृथग्ग्रहणं कृतम्, वनस्पत्यादीनां जीवस्थएकान्तसुषमादि काल में तैजस के अनुत्पन्न होने से तथा एकान्त दुष्षमादि में . उससे विनश्वरशीलता होने से उसमें कदाचित्कता का प्रसङ्ग प्राप्त होगा, इसी -तरह वायु का परिणाम जम्बूद्वीप को मानने पर इसमें चलनत्वधर्म का प्रस प्राप्त होगा अतः इन दोनों के जम्बूद्वीप में परिणाम होने के सन्देह की स्वतः विषयता होने के कारण यहां प्रश्न सूत्र में इनका उपन्यास नहीं किया गया है। 1 अव गौतमस्वामी ने जो इस प्रकार के ये प्रश्न किये हैं उनके उत्तर में प्रभु - उनसे कहते हैं - 'गोयमा ! पुढवी परिणामे वि, भाउपरिणामे वि, जीवपरिणामे 'वि' हे गौतम! यह जंबूद्वीप पर्वतादि कों से युक्त होने के कारण पृथिवी का परिणामरूप भी है तथा - नदी, हृद आदि वाला होने के कारण जल का परिणामरूप भी है' जीव परिणामे वि' एवं मुखवनादिकों में वनस्पति आदि वाला होने से वह जम्बूद्वीप जीव परिणामरूप भी है । यद्यपि जैन सिद्धान्त में पृथिवी अपकाय के परिणामत्व के ग्रहण से ही जीव परिणामता जम्बुद्वीप में सिद्ध हो जाती है फिर भी लोक में पृथिवी एवं जल में जीवत्व का व्यवहार नहीं होता है इस 1 તા એકાન્ત સુષમાદિકાળમાં તૈજસના અનુત્પન્ન હાવાથી તથા એમન્ત દુષમાદિમાં તેમાં વિનશ્વરશીલતા હાવાથી તેમાં કદાચિત્કતાનેા પ્રસંગ પ્રાપ્ત થશે આજ પ્રમાણે વાયુનુ પરિણામ જમ્મૂદ્રીપને માનવાથી તેમાં ચલનવધમ ના પ્રસંગ પ્રાપ્ત થશે આથી આ બંનેના જમ્મૂદ્રીપમાં પરિણામ હૈાવાના સન્દેહની સ્વતઃ અવિષયતા હૈાવાના કારણે અહીં પ્રશ્નસૂત્રમાં તેમના ઉપન્યાસ કરવામાં આવ્ચે નથી, હવે ગૌતમસ્વામીએ જે પ્રકારના આ अश्नो 'उपस्थित यि छे तेना उत्तरमा प्रभु तेभने ४ छे - 'गोयमा । पुढवीपरिणामे - वि आउपरिणामे वि, जीवपरिणामे वि' हे गौतम! मा भ्यूदीप पर्वताद्विथी युक्त होवानी કારણે પૃથ્વિના પરિણામરૂપ પણ છે તથા-નદી, સરાવર આાદિવાળા હાવાથી પાણીના परिक्षाभय पशु छे. 'जीवपरिणामे वि' भने भुवनाभिमां वनस्पति सहियाणी હોવાથી તે જમ્મૂીપ જીવપરિણામરૂપ પણ છે. જોકે જૈન સિદ્ધાંતમાં પૃથ્વિ, અપ્રકાયના પરિણામતના ગ્રહથી જ છત્રપરિણામતા જમ્મૂર્રીપમાં સાબિત થઈ જાય છે તેમ છતાં

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