Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 549
________________ जम्बूद्वीपप्राप्तिको धिक परिक्षेपेण प्रज्ञप्त:-कथित इति, 'एग जोयणसहस्सं उन्हेणं' एक योजनसहस्रमद्वेधेनोण्डत्वेन भवति जम्बूद्वीप: 'णवणवई जोयणसहस्साइं साइरेगाई उद्धं उच्चत्तेणं नवनवति योजनसइस्राणि सातिरेकाणि ऊर्ध्वमुच्चैस्त्वेन 'साइरेगं जोयणसयसहस्सं सन्नग्गेणं पाते सातिरेकं योजनशतसहस्रं किश्चिदधिकं लक्षैकयोजनं सर्वाग्रेण प्रज्ञप्तः । यद्यपि उण्डखव्य. वहारः सरित् समुद्रादौ दृश्यते उच्चलव्यवहारस्तु पर्वतादौ प्रसिद्धः तत्कथमत्र द्वीपे उण्डखो चखयोः प्रदर्शनं कृतं तत्प्रदर्शनमत्रायुक्तभिव प्रतिमाति तथापि समतल भूतलादारभ्य रत्नप्रभायामधासहस्रयोजनानि यावत् गमनेऽधोग्रामसलिलावतिविजयादिषु जम्बूद्वीपव्यवहारस्य समुपलभ्यमानत्वेन उद्वेधव्यवहारो द्वीपेऽपि न विरुध्यते एवं जम्बूद्वीपसमुत्पन्नानां ३ तीन लाख १६ हजार २ सौ २७ योजन ३ कोश २८ सौ धनुष १३ ।। अंगुल से कुछ विशेषाधिक है तथा-'एगं जोयणसहस्सं उबेहेणं' इसका उद्देध-जमीन के भीतर में रहना-एक हजार योजन का है-अर्थात् यह जमीन के भीतर में एक हजार योजन तक गहरा गया हुआ है 'णवणवई जोयणसहस्साइं साइरेगाई उद्धं उच्चत्ते गं' इसकी ऊंचाई कुछ अधिक ९९ हजार योजन की है, 'साइरेगाई जोयणसयसहस्सं सव्वग्गेणं पन्नत्ते' इस तरह इसका सर्वाग्र प्रमाण एक लाख योजन से कुछ अधिक है, यद्यपि उण्डत्य का व्यवहार-उद्वेध का व्यवहार-सरित् समुद्र आदि में देखा जाता है तथा उच्चत्व का व्यवहार पर्वतादि में प्रसिद्ध है तो फिर यहां द्वीप में उण्डत्व का और उच्चत्य का जो प्रदर्शन किया गया है वह अयुक्त जैसा प्रतीत होता है, परन्तु फिर भी समतल भूतल से लेकर रत्नप्रभा के नीचे एक हजार योजन तक जाने में अधोग्राम सलिलावतिविजयादि कों में जम्बूद्वीप का व्यवहार होता देखा जाता है इस कारण उद्वेध का व्यवहार य कोसे अट्ठावीसं तेरस अंगुलाई अद्धंगुलं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पन्नत्ते सेना પરિક્ષેપ ૩ ત્રણ લાખ ૧૬ હજાર બસે ૨૭ જન ૩ કેશ ૨૮૦૦ ધનુષ ૧૩ આંગળથી " ४४ विशेषाधि४ छ तथा-'एगं जोयणसहस्सं उबेहेणं' मे ष-भीननी म४२ २२ તે-એક હજાર એજનનું છે–અર્થાત્ તે જમીનની અંદર એક હજાર જન સુધી ઊડે गयेा छ ‘णवणवई जोयणसहस्साई साइरेगाई उद्धं उच्चत्तेणं' मेथी ४ ४७४ माघ ८८ २ योनी छे. 'साइरेगाई जोयणसयसहस्सं सम्बग्गेणं पन्नत्ते' मा शत गर्नु સર્વાગ્રપ્રમાણે એક લાખ એજનથી કંઈક અધિક છે, જોકે ઊંડાઈને વ્યવહાર-ઉદ્વેષને વ્યવહાર–સરિત્ સમુદ્ર આદિમાં જોવા મળે છે તથા ઉચ્ચત્વ (ઊંચાઈ)ને વ્યવહાર પર્વ તાદિમાં પ્રસિદ્ધ છે. તે પછી અહીં દ્વીપમાં ઊડત્વ તથા ઉચ્ચત્વનું જે પ્રદર્શન કરવામાં આવ્યું છે તે અગ્ય જેવું પ્રતીત થાય છે પરંતુ આમ છતાં પણ સમતલ ભૂતળથી લઈને રત્નપ્રભાની નીચે એક હજાર જન સુધી જઈએ તે અધોગ્રામ સલિલાવતિ વિજ્યાદિકમાં જમ્બુદ્વીપને વ્યવહાર થતે જોવામાં આવે છે આ કારણે ઊંડાઈને વ્યવહાર

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