Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 543
________________ - ५२८ जम्मूबीपप्राप्ति शते, तद्यथा-उत्कृष्टपदभाविनां त्रिंश चक्रवतिनां प्रत्येकं सप्तमप्तपंचेन्द्रिय रत्नसेनापत्यादि सद्भावेन सेनापति गाथापति पद्धकी पुरोहितरूपाणि चत्वारि पञ्चन्द्रिय मनुष्यरत्नानि, गजाश्वरूपे द्वे पञ्चन्द्रिय पशुरत्ने, विद्यामरकन्यका-मुभद्रा देवीत्यपरनाम्नी पञ्चन्द्रिय मनुष्यरत्नम् । सप्तसंख्याया विंशत्संख्या गुणने भवति यथोक्तसंख्येति । अय निधीनां सर्वाग्रपृच्छायां तेषां चतुस्त्रिंशसंख्यया गुणनं संभवेदपि किन्तु पश्चेन्द्रियरत्न सर्वाग्र पृच्छायो त्रिंशदगुणनं कथमितिचेद् उच्यते चतुर्पु वासुदेवविजयेषु तदा तेपामनुपलम्मात् निधीनांत नियतभावत्वेन सर्वदाप्युपलब्धेः, तेन रत्न सर्वाग्रसत्रे रत्नपरिभोगसूत्रे च न कश्चित् संख्याकतो विशेष इति । अथ रत्नपरिमोग प्रश्नसूत्रमाह-'जंबुद्दीवेणं' इत्यादि, 'जंबुद्दीणं-मंते ! दीवे' जम्बूद्वीपे खल भदन्त ! द्वीपे सर्वद्वीपमध्यजम्बूद्वीपे इत्यर्थः 'जहण्णपदे उकोरुपए वा' जघन्यपदे-सर्वस्तोकस्थाने वा उत्कृष्टपदे-सर्वोत्कृष्टस्थाने विचार्यमाणे 'केवड्या पंचिंदियरयणसया' कियन्ति-कियत्संख्यकानि पञ्चेन्द्रियरत्नशतानि 'परिभोगत्ताए इच्चमासेनापति १, गाथापति २, वर्द्धको ३, पुरोहित ४ ये चार पञ्चन्द्रिय मनुष्य रस्न हैं। गज एवं अश्व, ये दो पंचेन्द्रिय पशुरत्न हैं तथा विद्याधर कन्या जिसका नाम सुभद्रा होता है एक यह पंचेन्द्रिय स्त्री रत्न है इस तरह से ये सात पंचेन्द्रिय रत्न हैं। ये सब चक्रवर्ती यों के होते हैं। यहां ऐसी शङ्का हो सकती है कि निधियों की सर्वाग्र पृच्छा में ३४ से गुणा करना तो ठीक है परन्तु पंचेन्द्रिय रत्नों की सर्वाग्र पृच्छा में ३० का गुणा करना यह कैसे उचित हो सकता है ? तो इसका . समाधान ऐसा है कि चार जो वासुदेव विजय है उनमें उस समय उनका अनुः पलम्भ रहा करता है, परन्तु जो निधियां हैं वे तो नियत भाव से सर्वदा उनमें उपलब्ध होती हैं। इससे रत्न सर्वाग्रसूत्र में और रत्न परिभोगसूत्र में संख्या कृत कोई विशेषता नहीं है । 'जंबूद्दीवे गं भंते ! दीवे जहण्णपए उकोसपए वा केवइया पंचिंदिय रयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति' गौतमस्वामीने इस . . सात पयन्द्रियत्न या प्रमाणे छ -सेनापति (१) यापति (२) पद्धी (3) પુરાહિત () પંચેન્દ્રિય મનુષ્ય રત્ન છે ગજ તથા અશ્વ એ બે પંચેન્દ્રિય પશુરન છે તથા વિદ્યાધર કન્યા જેનું નામ સુભદ્રા હોય છે એક પંચેન્દ્રિય સ્ત્રીરન છે આ રીતે આ સાત પંચેન્દ્રિય રત્ન કહેલાં છે. આ બધાં ચક્રવર્તી એને હોય છે. અહીં એવી શંકા થઈ શકે કે નિધિઓની સર્વોપૃચ્છામાં ૩૪ થી ગુણવાનું તે ઠીક છે પરંતુ પંચેન્દ્રિય રત્નની ', સર્વગ્રપુચ્છામાં ૩૦ ગુણવાનું કઈ રીતે વાજબી ગણી શકાય? આનું સમાધાન એવું છે કે જે ૪ વાસુદેવ વિજ્ય છે તેમનામાં તે સમયે તેમને અનુપલંભ રહ્યા કરે છે પરંતુ જે નિધિ છે તે તે નિયતભાવથી સર્વદા તેમનામાં ઉપલબ્ધ હોય છે. આથી રન સર્વાગ્રसूत्रमा भने २न परिक्षा सूत्रमा सभ्यात विशेषता नथी. 'जंबूद्दीवेणं भंते ! दीवे जहपगपए उनकोसपए वा फेवइया प चिंदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति' गीतभाभी

Loading...

Page Navigation
1 ... 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569