Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 523
________________ '५०८ जम्बूद्री प्रप्तिसूत्रे ट्टेणं गोयमा ! णो पभूति' तत्तेनार्थेन गौतम । एवमुच्यते चन्द्रो देवरानः सुधर्मामाया मन्तः पुरेण सह विहतु न समर्थ इति । अत्रैव किञ्चिद्वैलक्षण्यमाद - 'केवल' इत्यादि, 'केव परियार रिद्धीए' केवलं नवरं परिवारऋदया, केवलं परिवारः परिकरस्तस्य ऋद्धिः- सम्पत् तया, एते सर्वेऽपि ममपरिचारका । अहं चैतेषां सामी- प्रभुरित्येवं निजस्यातिविशेष दर्शनाभिप्रायेणेतिभावः । 'नो चेवणं मेहुणवत्तिय' नैव खन्द नैथुनप्रत्ययं सुरतनिमित्तं यथा भवति एवं प्रकारेण भोगभोगान् भुञ्जानो वित्सु न प्रभुरिति यद्यपि अत्रोपाने सूर्यादीनामग्रमहिषी प्रदर्शनं न विद्यते तथापि जीवा निगमाधुपाने दर्शनाद् सूर्याग्रमहिषी प्रदर्शनमपि उपयुक्तमेव 'सूरस्स जोइसरण्णो कइअग्गमहिसीओ पन्नत्ताभ गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा - सूरप्पमा आयवामा अचिमाली पभंकरा, एवं अवसेसं जहा चंदपज्जुवासणिजाओ' वे हड्डियाँ चन्द्र एवं अन्य देवों देवियो द्वारा अर्चनीय यावत् पर्युपासनीय हैं 'से तेणद्वेणं गोधमा ! णो पभुति' इस कारण हे गौतम! मैंने ऐसा कहा है कि ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्क राज चन्द्र सुधर्मासभा में अन्तः पुर के साथ दिव्य भोग भोगो को भोग सकने के लिये समर्थ नहीं हैं 'केवलं पडियार रिद्धीए' हां, वह इस रूपसे 'कि यह मेरा परिकर है यह उसकी सम्पत् है ये सब मेरे परिकर है मैं इनका स्वामी हूं इस प्रकार' वहां अपना प्रभाव प्रकट कर सकता है। 'णो चेवणं, मेहुणवत्तियं' पर वह वहां मैथुन सेवन नहीं कर सकता है। यद्यपि इस उपाङ्ग में सूर्यादिकों की अग्रमहिषियों का प्रदर्शन नहीं किया गया है फिर भी जीवाभिगम आदि उपाङ्ग में सूर्यादिकों की अग्रमहिषियों का कथन रूप प्रदर्शन हुआ है इस से यहाँ सूर्यग्रमहिषियों का प्रदर्शन भी उपयुक्त है जो इस प्रकार से हैं- 'सूरस्स जोइसरण्णो कह अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ' हे भदन्त ! ज्योतिष्क राज सूर्य की कितनी अग्रमहिषियां कही गई हैं ? उत्तर में प्रभु ने कहा है- 'गोयमा । चत्तारि अग्गमहमीओ पण्णत्ताओ' हे गौतम! युपासनीय छे. 'से तेणट्टेणं गोयमा ! णो पभुत्ति' मा र हे गौतम! में मेवु ह्यु છે કે જ્યેકિન્દ્ર જ્યાતિષ્ઠરાજ ચન્દ્ર સુધર્માંસભામાં અન્તઃપુરની સાથે દિવ્ય ભાગલેગાને लोगची श४वा समर्थ नथी. 'केवलं पडियार रिद्धीए' डा, ते मा ३५थी या भारी परि४२ છે, આ તેની સમ્પત્તી છે, આ બધાં મારા પરિકર છે હું એમના સ્વામી છું એ પ્રકાર त्यां पोतानी प्रभाव अउट ४री शडे छे. 'णो चेवणं मेहुणवत्तियं' परन्तु ते त्यां भैथुन સેવન કરી શક્તા નથી, નેકે આ ઉપાંગમાં સૂર્યાર્દિકની અગ્રમહિષિઓનુ પ્રદર્શન કરવામાં આવ્યુ નથી તે પણ જીવાભિગમ આદિ ઉપાંગમાં સૂર્યાદિકની અગ્રમહિષિઓનુ કથનરૂપ પ્રાશન થયું છે આથી અહી સૂયૅગ્રમહિષિઓનુ પ્રદર્શન પશુ ઉપયુક્ત છે જે मा प्रभाछे- 'सूरस्स जोइसरण्णो कइ अग्गमहिीसीओ पण्णत्ताओ' हे भगवन् । ल्योतिष्ङरा सूर्यनी डेटली पट्टराणीया अडेवामां आवे छे ? उत्तरभां अनुश्री महे छे ! 'गोयमा !

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