Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 522
________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. ३१ चन्द्रस्यानमहिन्याः नामादिनि सगम् ५०७, सहेत्यादीनां सङ्ग्रहो भवति, 'दिव्याइ भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए' दिव्यान्-विलक्षः णान् लोकातिशयिते भोगमोगान्, भोगयोग्या ये भोगाः शब्दादिका विषयास्तान् भोगभोगान् भुञ्जानो-भोगं कुर्वाणो विह मिति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा.. हे गौतम ! 'णो इणढे समढे' नायपर्थः समर्थः अर्थात् हे गौतम ! यो यो कथितो भवता चन्द्रस्यान्तःपुरेण सह विहर्तमित्यादि तनसंभवति । तत्र हेतुं प्रदर्शयितुं प्रश्नयनाह-'से केगटेणं' इत्यादि, 'से कैण्टे णं भंते ! जाव विहरित्तए' तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते चन्द्रो ज्योतिष्केन्द्रो ज्योतिष्करान श्चन्द्रावतंसके विमाने चन्द्रायां राजधान्यां सुधर्मायां सभाया मन्तःपुरेण सह विहर्तुं न समर्थ इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चंदस्स णं जोइसिंदस्स जोइसराजस्स' चन्द्रस्य खलु ज्योतिप्केन्द्रस्य ज्योतिष्क राजस्य 'चंदवडंसगे विमाणे' चन्द्रावतंसके विमाने 'चंदाए रायहाणीर' चन्द्रायां राजधान्याम् 'सभाए सुहम्माए' सभायां सुधर्मायाम् 'माणवए चेइयखंभे' माणवके चैत्यस्तम्भे 'वइरामएसु गोलवट्ट समुग्गरम्' वज्रमयेषु गोलवृत्तसमुद्केषु 'बहूइओ जिणसकहाओ' बहूनि अनेकानि जिनसक्थीनि सन्निखित्ताओ चिट्ठति' सन्निक्षिप्तानि तिष्ठन्ति, 'ताओ णं चंदस्स अण्णेसि य बहूर्ण देवाणय' देवीणय तानि खलु जिनसक्थीनि चन्द्रस्यान्येषां च वहूनां देवानां देवीनां च 'अञ्चणिज्जाओ जाव पज्जुपासणिज्जाभो अर्चनीयानि यावत्पर्युपासनीयानि 'से ते. कर सकता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! णो इणढे समढे' हे गौतम! यह अर्थसमर्थ नहीं है अर्थात्-चन्द्र अपने अन्तः पुर के साथ सुधर्मासभा में दिव्य भोगयोग्य भोगों को नहीं भोग सकता है ‘से केणटेणं भंते !' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा! चंदस्स णं जोइसिंदस्स चंदवडे सए विमाणे चंदाए० सभाए सुहम्माए माणवए चेइय खंभे वइरामः एसु गोलवदृसमुग्गएप्सु बहूईओ जिणसकहाओ०) हे गौतम । ज्योति केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र की चन्द्रराजधानी में सुधासभा में माणवक नामका एक चैत्यस्तम्भ है उसके ऊपर वज्रमय गोलवृत्त समुद्गकों में जिनेन्द्र देव की हड्डियां रखी हुई 'ताओ णं चंदस्स अण्णेसिंच बहणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ जाय ગૌતમ! આ અર્થ સમર્થ નથી અર્થાત ચન્દ્ર પિતાના અન્તઃપુરની સાથે સુધર્માસભામાં व्य लोगयोग्य सागान मागवीत नथी. 'से केणटेणं भंते !' 3 word! मा मा५ ध्या ॥२४थी ४ छ। ? पासमां प्रभु ४३ छ-'गोयमा ! चं दस्सणं जोइसिंदुस्स च दाए० सभाए सुहम्माए माणवए चेइयखंभे वइरामएसु गोलवट्टसमुगएसु बहूईओ जिणसकहाओ' હે ગૌતમ! તિકેન્દ્ર તિકરાજ ચન્દ્રની ચન્દ્રા રાજધાનીમાં સુધર્માસભામાં માણવક નામને એક ચૈત્યસ્તમ્ભ છે. તેની ઉપર વજમય ગાળવૃત્ત સમુદગકમાં જિનેન્દ્ર દેવના 8- रामेा छ. 'ताओणं चंइस अण्णेसि च बहूणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ जव पज्जुवासणिज्जाओ sai यन्द्र भने मन्य पहेवी। वारा अर्थनीय यात्

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