Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मम्मदीपप्रज्ञप्ति जाव दीसंति' एवम्-उपर्युकप्रकारेण खलु गौतम ! तदेव यावद् दृश्येते इति । अत्रापि यावत्पदेन सम्पूर्णस्य प्रश्नवाक्यस्योत्तरवान्यस्य ग्रहणं भवति संगृद्य चोपसंहरन् प्रकरणार्य परिसमापयतीति दशम दूरासनादि द्वारं समाप्तमिति ॥ १० द्वारम् ॥
उद्गमनास्तमयनादीनि सूर्यादिज्योतिष्कदेवानां संचरणनो भवतीति सूर्यादीनां गमन प्रश्नाय एकादशं गतिद्वारमाह-'जंबुद्दीवेणं' इत्यादि, 'जंबुद्दीवेणं भने ! दीवे एरिया' फैलने से उदय काल में वह स्वभावतः दूर होता है परन्तु लेश्या के प्रतिघात के कारण सुख दृश्य होने से वह पास में रहा हुआ है ऐसा प्रतीत होता है 'लेस्साहितावेणं' और जय सूर्यमण्डलगत तेज प्रचण्ड हो जाता है तथा सर्व
और फैल जाता है तब वह 'मज्झति य मुहुसि भूले दुरे य दीसंति' मध्याह्न काल में स्वभावतः पास रहने पर भी दूर दिखाई देता है क्योंकि वह प्रचण्ड तेज के कारण दुर्दर्शनीय हो जाता है अतः वह दूर रहा हुआ है ऐसी लोकों को प्रतीति उत्पन्न होने लगती है। इसी कारण सूर्य के समीपवर्ती होने पर वह प्रचण्डतेजवाला हो जाता है, उस समय दिवस की वृद्धि हो जाती है तथा गर्मी बढ जाती है और जब वह दूरतर होता है उस समय वह मन्द तेजवाला रहता है, दिवस की हानि हो जाती है और शीत आदि पडने लगती है 'लेस्सा. पडिघाएणं अस्थमणमुहसि दुरे मूले य दीसंति' अस्तमन काल में सूर्यमण्डल गत तेज के प्रतिघात हो जाने से वह स्वभावतः दृरतर हो जाता है परन्तु वह पास रहा हुआ है ऐसा प्रतीत होता है (एवं खलु गोयमा ! तं चेव जाव दी संति' इस कारण हे गौतम ! जैसा तुमने प्रश्न किया है उसी के अनुसार यह उत्तर वाक्य है अर्थात् तुम्हारा प्रश्न ही स्वीकृति के रूप में मेरा उत्तर है
दूरासनादि डार समाप्त ।
પાસે રહેવા છતાંએ દર જોવામાં આવે છે કેમકે તે પ્રચંડ તેજને લીધે દુર્દશનીય હેય છે. એથી તે દૂર રહે છે, એવી લોકોને પ્રતીતિ થવા માંડે છે. આ કારણથી જ સૂર્ય સમીપવર્તી હોવા છતાં તે પ્રચંડ તેજવાળ થઈ જાય છે, તે વખતે દિવસની વૃદ્ધિ થઈ જાય છે તેમજ ગરમી વધી જાય છે અને જ્યારે તે દરતર થઈ જાય છે, તે સમયે તે મંદ તેજવાળ થઈ જાય છે. દિવસની હાનિ થાય છે અને શીત વગેરે પડવા માંડે છે. 'लेस्सा पडिघाएणं अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे मूले य दीसंति' मस्तमनमा सूर्य भरत तना પ્રતિઘાત થઈ જાય છે તેથી તે સ્વભાવતઃ દૂરતર હોય છે, પરંતુ તે પાસે રહે છે એવી प्रतीति थाय छे. 'एवं खलु गोयमा । तं चेव जान दीसंति' माथी २ प्रभारी तमे प्रश्न કર્યો તે પ્રમાણે આ ઉત્તરવાય છે. એટલે કે તમારા પ્રશ્નની સ્વીકૃતિના રૂપમાં મારે જવાબ છે.
દૂરાસાદિકાર સમાપ્ત