Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 472
________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारासू. २७ चन्द्रसूर्यादीनां ताराविमानोच्चत्वादिनि० ४५५ भाव्यात् एकादशाधिकै रेकादशमि यो जनशसैः 'अबाहाए जोइसे पन्नत्ते' याधया ज्योतिष स्थिरं ज्योतिश्चक्रं प्रज्ञप्तं कथितम् प्रकरणात् स्थिरं ज्योतिश्चक्रमेवेति ज्ञातव्यम् चरज्योतिचक्रस्य तत्राभावादिति चतुर्थद्वारम् ४ ॥ ____ अथ पञ्चमद्वारं पृच्छति-'धरणितलाभोणं अंते' इत्यादि, 'धरणितलाओ णं भंते धरणितलात् खल भदन्त ! अत्र प्रश्नैकदेश एव कथितः किन्तु एकदेशेन परिपूर्ण प्रश्नसूत्रं ज्ञातव्यम्, तच्चैवम्-'धरणितलाओ गं भंते ! उद्धं ऊपइत्ता केवइयाए अवाहाए हिडिल्ले जोइसे चारं चरइ ? गोयमा !' वस्त्वेकदेशस्य संपूर्ण वस्तुस्मारकत्वनियमात्, ततश्चायमर्थ:-धरणितलात् समयप्रसिद्धात् समतलभूभागात् ऊर्ध्वमुत्पत्य कियत्यया अवाधया अधस्तनं ज्योतिष तारापटलं चारं चरति गतिं करोति इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सत्तहि णउएहिं जोयणसएहिं' सप्तभिनवतः नवत्यधिकैः सप्तभिर्योजनशतै रित्येवं रूपया 'अबाया जोइसे चारं चरइत्ति' अबाधया ज्योतिष ज्योतिश्चक्र चार चरति-करोतीति । सम्प्रति सूर्यादि विषयमबाधास्वरूपं संक्षिप्प भगवान् स्वयमेव दर्शयति-'एवं सूर हैं-'गोयमा! एकारस एक्कारसेहिं जोयणसएहिं अपाहाए जोइसे पन्नत्ते' हे गौतम ! लोक के अन्त से अलोक के पहिले २ ज्योतिश्चक्र ११११ योजन छोडकर स्थिर कहा गया है क्योंकि जगत का स्वभाव ही ऐसा है यहां चर ज्योतिश्चक्र नहीं है। चतुर्थ द्वार समाप्त पञ्चम द्वारका कथन 'धरणितलाओ णं भंते ! उद्धं उपपइत्ता केवइयाए अवाहाए हिडिल्ले जोहसे चारं चरई' हे भदन्त ! इस धरणितल से-समयप्रसिद्ध-समतलभू भाग से कितनी ऊपर की दूरी पर अर्थात् कितनी ऊंचाई पर अधस्तन ज्योतिष तारा पटल गतिकरता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा! सत्तहिं णउएहिं जोयणसएहिं अवाहाए जोइसं चार चरइ' हे गौतम ! इस समतल भूमिभाग से हे छे-'गोयम! ! एकारसेहिं जोयणसएहि अबाहाए जोइसे पन्नत्ते' हे गीतम! सोना અન્તથી અલેકની પહેલા પહેલા જયોતિશ્ચક ૧૧૧૧ યોજન છોડીને સ્થિર કહેવામાં આવ્યું છે કારણ કે જગતને સ્વભાવ જ એવે છે અહીં “ચર” જ્યોતિશ્ચક નથી. સમાત ! પંચમઢાર કથન– 'धरणितलाओ णं भंते ! उद्धं उत्पइत्ता केवइयाए अबाहाए हिडिल्ले जोइसे चार चरई' હે ભદન્ત ! આ ધરણિતળથી સમય પ્રસિદ્ધ–સમતલબૂમાગથી કેટલે દૂર અર્થાત્ કેટલી ઊંચાઈ પર અધતક જ્યોતિષ તારાપટલ ગતિ કરે છે ? આના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે'गोयमा ! सत्तहिणउपहिं जोयणसएहि अबाहाए जोइसं चारं चरई' हे गौतम! मा _

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