Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 479
________________ अम्बूद्वीपातिको द्वादशनक्षत्राणि भवन्ति तथापि इदमभिनिनक्षत्रं शेपैकादेशनक्षत्रापेक्षया मेरुदिशि स्थितं सद चार चरति तस्मात् कारणात् सर्वाभ्यन्तरचारीति कथितम् । तथा-'मूलो सम्यवाहिर चार चरई' मूलनामकं नक्षत्रं सर्वबाह्य चार चरति यद्यपि पञ्चदशमण्डलाद् वहिवारीणि मृगशिरः प्रभृतीनि पङ्कनक्षत्राणि पूर्वापाढोत्तरापाढयो श्चतुर्णा तारकाणां मध्ये द्वे द्वे तारके कथितानि, तथापि एतन्मूलनक्षत्र मपरवहिश्चारि नक्षत्रप्रपेक्ष्य लवण समुद्रदिशि व्यवस्थितं सत् चार चरति, अस्मादेव कारणात् मूलनक्षत्रं सर्वतो बहिश्वरतीति कथितम् अतो न कोऽपि दोप इति । 'भरणीहिडिल्लं' भरणी नक्षत्रं सर्वाधस्तनं चार चररि, तथा-'साई सब उपरिल्लं चार चरई' स्वातीनक्षत्रं सर्वोपरितनं चार चरति, अर्थाद् दशाधिकशतयो जनरूपे ज्योतिश्चक्रवाहल्ये यो नक्षत्राणां क्षेत्रविभागश्चतु योजनप्रमाणकः तदपेक्षयोक्तनक्षत्रयोः क्रमेणाधस्तनौ के इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभु कहते हैं-गोयमा ! अभिई गक्खत्ते सन्चन्भंतरे चारं चरई' २८ नक्षत्रों में से जो अभिजित् नक्षत्र है वह सर्व नक्षत्र मंडल के भीतर होकर गति करता है यद्यपि सर्वाभ्यन्तर मंडल चारी अभिजित आदि १२ नक्षत्र हैं तथापि यह अभिजित् नक्षत्र शेष ११ नक्षत्रों की अपेक्षा मेक दिशामें स्थित होकर गति करता है इस कारण इसे सर्वाभ्यन्तर चारी कहा गया है। तथा-'मूलोसव्ववाहिरं चारं चरई मूल नक्षत्र सर्व नक्षत्र मंडल से बाहिर होकर गति करता है यद्यपि पन्द्रह मंडल से बहिवारी मृगशिरा आदि छह नक्षत्र और पूर्वाषाढा और उत्तराषाढा इन दो नक्षत्रों के चार तारकों के बीच दो दो तारे कहे गये हैं तब भी यह मूल नक्षत्र अपर पहिचारी नक्षत्र की अपेक्षा लवण समुद्र की दिशा में व्यवस्थित होकर गति करता है इसी कारण मूल नक्षत्र सर्वतो वाहिवारी है ऐसा कहा गया है। इसलिये कोई भी दोष नहीं है। 'भरणी हिडिल्लं' भरणी नक्षत्र सर्वनक्षत्र मंडल से अधश्चारी होकर गति करता है तथा-'साई सव्व उवरिल्लं चार चरइ' स्वाति नक्षत्र सर्वनक्षत्र मंडल से अपर उत्तरमा प्रभु ४३ छ-'गोयमा ! अभिई णक्खत्ते सव्वन्भतरं चारं चरई' २८ नक्षत्रीमाथा रे અભિજિત્ નક્ષત્ર છે તે સર્વ નક્ષત્ર મંડળની અંદર થઈને ગતિ કરે છે. જો કે સર્વાભ્યન્તર મંડળ ચારી અભિજીત આદિ ૧૨ નક્ષત્ર છે તે પણ આ અભિજિત નક્ષત્ર બાકીનાં ૧૧ નક્ષત્રની અપેક્ષા મેરૂ દિશામાં સ્થિત થઈને ગતિ કરે છે આથી જ તેને સભ્યન્તર थारी वामां भाव्यु छ तथा 'मूलो सव्ववाहिरं चारं चारई' भू नक्षत्र सपनक्षत्र भ.. ળની બહાર થઈને ગતિ કરે છે. જો કે પંદર મંડળથી બહિચારી મૃગશિર આદિ છ નક્ષત્ર અને પૂર્વાષાઢા અને ઉત્તરાષાઢા એ બે નક્ષત્રના ચાર તારકેની વચ્ચે બબ્બે તારા કહેવામાં આવ્યા છે તે પણ આ મૂલ નક્ષત્ર ઉપર બહિંઢારી નક્ષત્રની અપેક્ષા લવણ સમુદ્રની દિશામાં વ્યવસ્થિત થઈને ગતિ કરે છે. આથી જ મૂલ નક્ષત્ર સર્વ તે બહિશ્ચારી छे सेभ. ४ वामां मा०यु छ माथी ४ प प नयी 'भरणी हिद्विल्लं' सरणी नक्षत्र स-नक्षत्र भउजी अश्वारी न गात ४२ छ तथा 'साई सव्व उवरिल्लं चारं चरई'

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