Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 504
________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. २९ चन्द्रसूर्याणां विमानवाहकदेवसंख्यानि० ५९ माणं' अमितबलवीर्यपुरुषकारगराक्रमाणाम्, 'मयागज्जिय गंभीररवेणं' महता गर्जित गम्भीररवेणं-शब्देन 'महुरेणं मणहरेणं' मधुरेण मनोहरेग-चित्ताहादकेन 'रेता' पूरयन्ति 'अंबरं दिसाय सोमयंता' अम्बरं-गगनतलम् • दिशाच पूर्वादिकाः शोभयन्ति, 'चत्तारि देवसाहस्सीओ चत्वारि देवसहस्राणि, 'वसहरूबधारीणं देवाणं' पमरूपधारिणां देवानाम्, 'पञ्चत्थिमिल्लं वाहं परिवहतित्ति' पाश्चात्यां-पश्चिमदिग वस्थितां वाहां परिहन्तीति॥ सम्प्रति-चतुर्थबाहा बाइकान देवानाह-'चंद विमाणस्सणं' इत्यादि, 'चंदविमाणस्सणं' उत्तरेणं' चन्द्रविमानस्य खलु उत्तरस्या उत्तरपायें वामपा इत्यर्थः, हयरूपधारिणां देवानां चत्वारिदेवसहस्राणि उत्तरं बाहं परिवहन्तीत्यग्रिमेणान्वयः, तेपामेव देवविशेपाणां विशेषणानि आइ-'सेयाणं' इत्यादि, 'सेयाण' श्वेतवर्णवताम् 'मुभगाणं' सुभगा. नाम् अतीव सुन्दराणा मित्यर्थः 'सुपभाणं' सुप्रमाणां-विलक्षणतेजोविशिष्टानामित्यर्थः गति अमित है इनका बल वीर्य पुरुपकार और पराक्रम अपरिमित होती है ये 'महया गज्जियगंभीररवेणं महुरेणं अणहरेण' ये अधुर मनोहर जोर २ की गर्जना के गंभीर शब्द से 'अंबरं दिसाओ य पूरेता लोभयंता सहरूवधारीणं देवाणं चत्तारि देवसाहस्सीओ' आकाश को एवं पूर्वादिक दिशाओं को भर देते हैं और उनकी शोभा बढा देते हैं इस तरह से यह वृषभरूप धारी चार हजार देवों के सम्बन्ध का कथन है ये चार हजार वृषभरूप धारी देव 'पच्चस्थिमिल्लं वाहां परि वहति त्ति' चंद्र विमान की पश्चिम बाहा को खेंचते हैं। अब सूत्रकार चन्द्रविमान की चतुर्थवाहा के थाहक देवों के संबंध में कथन करते हैं-'चंद विमाणस्त णं उत्सरेणं' चन्द्रविमान की उत्तर दिशा में जो हयरूप धारी देव-चार हजार देव-उत्तर पाहाको खेंचते हैं उनके विषय में सूत्रकार इन विशेषणों का कथन करते हैं-थे सब हय रूप धारी 'सयाणं श्वेत वर्णवाले होते हैं, 'सुभगाणं' सुन्दर होते हैं 'सुप्पभाणं' विलक्षण तेज विशिष्ट होते हैं, गति भिन छ मना ५, पीय पु३१४३२ मन पराम अमित छ तसा 'महयागज्जिय गंभीररवेणं मणहरेण' तया मधुर, भने। २ २०२नी मनाना भी२ ५४थी 'अंबर दिसाओ य पुरेता सोभयंता वसहरूपधारीणं देवाण चत्तारि देवसाहसीओ' माशन અને પૂર્વાદિઠ દિશાઓને ભરી દે છે અને તેમની શેભામાં અભિવૃદ્ધિ કરે છે. આ રીતે આ વૃષભરૂપધારી ચાર હજાર દેના સમ્બન્ધનું આ કથન છે. આ ચાર હજાર વૃષભ ३५५री ४१ 'पच्चस्थिमिल्लं वाहां परिवहं तित्ति' यन्द्रविमाननी पश्चिमपाडाने मेये . હવે સૂત્રકાર ચન્દ્રવિમાનની ચતુર્થવહાના વાહક દેના સંબંધમાં કથન કરે છે'चंदविमाणस्स गं उत्तरेणं' यन्द्रविननी STREAMI य३५धारी -यार हुनर દેવ—ઉત્તરવાહીને ખેંચે છે તેમના વિષયમાં સૂત્રકાર રમા વિશેષણનું કથન કરે છે–આ બધાં ५३५धारी ३५ 'सेयाण श्वेतपाय 2, 'सुभगाणं' या सुन्दर डाय छ, 'सुप्पसणं 17

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