Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 506
________________ प्रकाशिका टीका-संपतंयकारः . २१ चन्द्रपणां विभागवादकदेवसण्यानि० ४९१ उत्कूर्दनं धावनं - शीघ्रवृजुगमनं धोरणं गतिचातुरी त्रिपदी - भूमौ पदत्रयन्यासः जयिनीवगमनान्तर जयवतीव यद्वा जविनीवेगवती शिक्षिता - अभ्यस्ता गतिर्यैस्ते तथा तेपाम्, 'ललंतला मगललायवर भूस गाणं' ललग्तला मगललातवर भूपणानाम्, तत्र - ललन्ति - दोलायमानानि लामानि प्राकृकृतत्वात् रम्याणि गलळातानि कण्ठेन्यस्तानि वरभूषणानि येषां ते तथा तेषाम्, 'संनयपासणं' स भवपार्थानाम् 'संगयपासाणं' सङ्गपार्थानाम्, 'मुजायपासाणं' सुजातपार्श्वानाम्, 'पीवर वट्टिय सुसंठिय कडीगं' पीवरवर्तितसुसंस्थितकटीनाम्, “ओलंब पलंचलक्खणप्पमाण जुत्त रमणिज्जवालपुच्छाणं' अवलम्ब प्रलम्बलक्षणप्रमाणयुक्त वालपुच्छानाम्, "तणु सुहुम सुजायणिद्ध लोमच्छविहराणं' तनुश्चक्ष्य सुजात स्निग्ध लोमच्छविधोरण तिवइ जइण सिक्खियगईणं' ये सब गर्त आदि के लांघने में, बलान कूदने में, घावन- दौडने में, धोरण -गति की चतुराई में त्रिपदी में-भूमि पर तीन पैरों के रखने में जो इनकी चाल है वह जयिनी है - गमनान्तर को जीतने वाली है अथवा वेगवती है, इससे ऐसा ज्ञात होता है कि इस प्रकार की चाल इन्होंने पहिले से ही सीख रखी है 'ललंत लाभगललायवर भूसणाणं' दोलायमान एवं सुरम्य आभूषण इन्होंने अपने २ गलों में धारण कर रखे है 'संनयपासाणं' दोनों पार्श्वभाग इनके नीचे की ओर प्रमाण रूप में नत है 'संगतपासाणं' इसी कारण वे संगत और 'सुजायपासाणं' सुजात-जन्मदोष से रहित है 'पीवर - afer सुसंठिपकडणं' इनके कटि भाग पीवर - पुष्ट और गोल हैं तथा सुन्दर आकार वाले है 'ओलंच पलंब लक्खणप्पमाणजुत्तर मणिज्जवालपुच्छाणं' इनके बाल प्रधान पुच्छों के अर्थात् चामरों के बाल अवलम्ब अपने २ स्थानों पर खूब अच्छी तरह से जमे हुए हैं बडे २ हैं, लक्षण युक्त हैं और प्रमाणोपेत हैं 'तणुतिवइजइण सिक्खियगइन' से मघां गति आहिने यांचत्रामां, वहगन–त्रामां, धावनદેડવામાં ધેારણુ-ગતિની ચનુરાઇમાં, ત્રિપઢીમાં-ભૂમિ પર ત્રત્રુ પણ રાખવામ' જે એમની ચાલ છે તે જયિની છે-ગમનાન્તરને જિતવાવાળી છે, આનાથી એવુ જ્ઞાન થાય છે કે या अहारनी यास तेथेोथे भगाउथी ४ शीभी सीधी छे, 'ललंतल, मंगळलायवर - भूसणाणं' होसायभान भने सुरभ्य याभूषण मेमो पोतपोताना गणामां धारयु हरी राभ्यां छे. 'संनयपासाणं' भने पार्श्वभाग सेभनी नीथेनी मालुमे प्रभानुसर नभेसां छे. 'संगतपासाणं' या भरणे तेथे सांगत तेभन 'सुजायपासाणं' सुलत-४ भो!उथी रहित है. 'पावरवट्टिय सुसंठिकडीणं' भने। उटिलाग चीवर - युष्ट भने गोण छे तथा सुन्दर भारवाणी छे. 'ओलंग पलंबलक्खणप्पमाण जुत्त रमणिज्जवालपुच्छाणं' मेभनी વાળ પ્રધાન પૂછડીએના અર્થાત્ ચામરાના વાળ અવલમ્બ પાતપેતાના સ્થાને ઘણી सारी रीते ङगेझा छे, भोटां भोटां छे, सक्षायुक्त छे भने प्रभावोपेत छे. 'तणुसुहुम सुजाय णिद्ध लोमच्छविहराणं' मेमना शरीर पर ने ईवाडा તે તનુસૂફમ-ઘણાં જ

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