Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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जैनों का संक्षिप्त इतिहास/18
प्रयाण किया वे पटना आये। परन्तु इस विहार में स्थूलिभद्र के अलावा उनके सभी शिष्य पिछड़ गये। पटना में भद्रबाहु ने स्थुलिभद्र को अपना समस्त ज्ञान देने का प्रयास किया। स्थूलीभद्र की सात बहिने वहाँ जब दर्शनार्थ आईं तो उन्हें चमत्कृत करने के लिये स्थूलिभद्र सिंह बन गये। भद्रबाहु को पता चला तो उन्होंने स्थूलिभद्र को आगे सीखाने से मना कर दिया। सारे. संघ की विनती पर शेष अंग या पूर्वो का ज्ञान इस शर्त पर करवाया कि वे आगे चार अध्याय किसी को नहीं पढायेंगे। भद्रबाह के बाद स्थूलिभद्र आचार्य हुए तब चन्द्रगुप्त मोर्य का शासन था।
अशोक के पौत्र सम्प्रति थे। उन्होंने जैन धर्म का दक्षिण भारत में भी प्रचार किया। तमिलनाडू में ब्राझिलिपि में 300 बी. सी. में लिखाये शिलालेख प्राप्त हैं। वे जैनों के बताये जाते हैं। जो मदुराई व तिन्नेवली जिलों में हैं। ईसा की पहली कुछ शताब्दियों में जैन धर्म ने तामिल साहित्य पर भी प्रभाव डाला। अशोक से 100 वर्षों के भीतर जैन धर्म पश्चिम में पठानकोट तक पहुंच गया। तब जैनाचार्य सुहस्तिन और उनके शिष्य रोहरण थे, जिनके शिष्यों ने वहाँ प्रचार किया था।
ईसा की पांचवी सदी में वल्लभी नगर गुजरात में आचार्य क्षमाश्रमण देवर्द्धि के नेतृत्व में अब तक श्रुति परम्परा पर तीर्थंकरों एवं मुख्यतः महावीर से गणधरों को जो आगम ज्ञान प्राप्त था, वह पीढी, दर पीढी शुद्ध श्रवण, उच्चारण एवं स्मरण से चला आ रहा था तथा जिसके दीर्घकाल प्रवाह से नष्ट होने की आशंका थी। उसे श्वेताम्बर धर्मगुरुओं के सम्मेलन में संकलित, संग्रहित कर लिपिबद्ध कर लिया गया। कल्पसूत्र पूरा हुआ जो भद्रबाहू ने प्रारम्भ किया था। 11 अंगों की रचना की गई जो निम्न है -
. (1) आचारंग सूत्र, (2) सूर्यगडांग (सूत्रकृतांग), (3) थाणांग (स्थानांग), (4) समयवयाग, (5) भगवती वियाहपन्ति (भगवती व्याख्या प्रवृति), (6) नायधम्म कहाओ (ज्ञातधर्म कथा), (7) उवसगदसाओ (उपासक दर्शाया), (8) अन्तगददसाओ, (9)