Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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जैनों का संक्षिप्त इतिहास/16
करूँगा। प्रथम चौमासा अस्थिग्राम में किया जहाँ प्रारम्भ में ही उनकी अहिंसा एंव निर्भयता की कठोर परीक्षा शूलपाणि यक्ष मंदिर में हुई। यक्ष जो पूर्व-भव में वृषभ था जो सेठ की लाभ/लोभ वृति के कारण बहती नदी में से शकट (बैलगाड़ी) के अधिक भार को निर्ममता पूर्वक खींचे जाने से सेंध टूटने व वहीं ग्राम में गिर पड़ने का शिकार था तथा जिसे ग्रामवासियों ने उसके लिये दिया गया जीवतव्य हड़प कर भूखों प्यासों मरने को बाध्य कर दिया था। उन पर वह दुर्दान्त रूप से कुपित था। महामारी अकाल आदि से ग्रामजन अस्थियों के यत्रतत्र ढेर बन चुके थे। जिसके विकराल अट्टहास एवं नृश्संता से कोई भी जीवित नहीं बचता था। उसे अपनाने, शांत व अहिंसक बनाने का संकल्प महावीर ने लिया। उसके सारे क्रोध के भाजन बने।
उनकी ममतामयी करूणा ने उन पर किये गये वार विफल कर दिये। वह प्रभु चरणों में गिर पड़ा, वैर-भाव भूलाकर। तभी दुज्यंत आश्रम में ध्यान करते हुए अकाल ग्रस्त प्रदेश की गऊएं उनकी कुटिया के छप्पर को तोड़ ले जाने पर आश्रम वासियों द्वारा उन्हें उलाहना मिला। तब आत्म- साधना हेतु उन्होंने और कठोर व्रत लिया। जहाँ अवमानना, घणा न हो वहाँ रहकर खण्डहरों, वीरान जंगलों में ध्यान किया जाये। अधिकाशंतः मौन रखा जाये। देह धारण के लिए अंजलि भर से अधिक भोजन न लिया जाये । मुक्ति पथ की इस लम्बी यात्रा में (42 चौमासे) निम्न प्रकार किये -अस्थिग्राम (1) , चंपापुरी(3), वैशाली तथा बनियाग्राम (12), राजगिरि तथा नन्दा (14), मिथि (6), बदिधित्ता (2), अलाबिया (1) , पालिया भूमि (1) , सावत्शी (1), पावा (1)।
इसी प्रकार अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य, आचौर्य एवं ब्रह्मचर्य के कठोर तप प्रयोग किये। उनकी अनार्य-देश की यात्रा में उन पर कुत्ते छोड़े गये। उन्हें काटा गया, बांधा गया, गुप्तचर समझकर उन्हें यातनायें दी गयीं । यहाँ तक कि शूलि पर चढ़ाने अथवा बलि देने के लिये लाया गया। फिर भी वे अंहिसा पथ से