Book Title: Jain Vidya 02
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 13
________________ प्राकृत और वर्तमान खड़ी बोली के विकास का इतिहास जिसके अध्ययन के बिना सम्बद्ध नहीं हो सकता, जुड़ नहीं सकता वह है अपभ्रंश । इस दिशा में सर्वप्रथम प्रयास प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् पिशल, जैकोबी आदि ने किया। इसके पश्चात् भारतीय विद्वानों ने इस कड़ी का विभिन्न दृष्टियों से अध्ययन किया। किन्तु इस ओर जो प्रयत्न अब तक हुए हैं वे बहुआयामी एवं बहुपरिमाणी होते हुए भी पर्याप्त नहीं हैं। अभी तक इस क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना शेष है। .. अपभ्रंश भाषा के ज्ञात साहित्य में से अधिकांश जैन ग्रंथ भण्डारों से प्राप्त हुना है किन्तु अभी भी सैंकड़ों ऐसे ग्रंथ भण्डार हैं जिनका सर्वेक्षण होना शेष है। यदि ऐसा संभव हो सके तो इस भाषा की अनेक ऐसी रचनाएं प्रकाश में और आ सकती हैं जो अब तक अज्ञात रही हैं। अपभ्रंश भाषा के आद्य कवि कौन थे यह प्रश्न अभी तक अनुत्तरित ही है क्योंकि वर्तमान में ज्ञात कवियों में से प्राचीनतम कवि स्वयंभू ने अपनी रचनाओं में अपने पूर्ववर्ती ईशान, चतुर्मुख, द्रोण आदि कवियों का उल्लेख किया है जिनकी कोई रचना अद्यावधि उपलब्ध नहीं है। अतः पत्रिका का प्रथम अंक हमने अब तक ज्ञात ऐसे महाकवियों जिनकी कि रचनाएं उपलब्ध हैं, में से कवि स्वयंभू के नाम पर 'स्वयंभू विशेषांक' के रूप में प्रकाशित किया था। योजना यह है कि अपभ्रंश भाषा के प्रत्येक कवि पर कालक्रमानुसार एक विशेषांक प्रस्तुत किया जाय जिससे कि उस कवि के व्यक्तित्व और कर्त त्व का विभिन्न दृष्टिकोणों से विस्तृत अध्ययन एक ही स्थान पर हो . सके। इस योजना का साहित्य-जगत् में हमारी आशा से भी अधिक स्वागत हुआ है यह प्रथम अंक पर प्राप्त उन अनेक सम्मतियों से, जिनमें से कुछ का संक्षिप्त प्रकाशन इस अंक में किया जा रहा है, स्पष्ट है। महाकवि स्वयंभू के पश्चात् जिस महाकवि का नाम अपभ्रंश साहित्य के ज्ञात रचनाकारों की सूची में आता है वे हैं महाकवि पुष्पदंत । दोनों ही कवि अपभ्रंश साहित्य-गगन के ऐसे ज्वलन्त नक्षत्र हैं जिनमें से किसी एक का महत्त्व दूसरे से कम नहीं आंका जा सकता। स्वयंभू ने जहाँ तत्कालीन समाज में बहुचर्चित राम और कृष्ण कथाओं को अपने काव्य का विषय बनाया है वहाँ पुष्पदंत ने अपने काव्य प्रणयन के लिए वेसठ शलाकापुरुषों (महापुरुषों) के चरित्र को चुना। अपभ्रंश में पौराणिक महाकाव्यों की शैली जैन कवियों की देन है । पुष्पदंत इस शैली के सफल प्रणेता और कलाकार हैं अतः स्वयंभू के पश्चात् पुष्पदंत के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर सामग्री प्रस्तुत करने का निश्चय औचित्यपूर्ण ही है । सौभाग्य से इस कवि पर इतनी प्रचुर, महत्त्व एवं वैविध्य पूर्ण सामग्री प्राप्त हुई कि उसे एक ही अंक में समाहित करना संभव न हो सका। अतः उस सामग्री का दो खण्डों में विभाजन किया गया। प्रस्तुत प्रथम खण्ड में पुष्पदंत की एक ही रचना "महापुराण" सम्बन्धी सामग्री का प्रकाशन किया जा रहा है और आगामी खण्ड में उनकी शेष दो कृतियों "जसहरचरिउ" और "णायकुमारचरिउ" का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया जायगा।

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