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अधर्मास्तिकाय के प्रायः सभी गुण पाये जाते हैं। आकाशास्तिकाय और काल का वैज्ञानिक रूप में विवेचन पुस्तक में किया गया है।
विज्ञान में पुद्गल के ठोस, द्रव्य, वायव्य और ऊर्जा - ये चार रूपों को परमाणु से निर्मित ही मानता है। विज्ञान की दृष्टि में मौलिक द्रव्य वह है जिसमें अन्य द्रव्य का मिश्रण नहीं है। हाइड्रोजन, हीलियम आदि १०३ तत्त्व मानता है। जो परमाणु के ही रूप हैं। पुद्गल के स्कन्ध, देश, प्रदेश, परमाणु, स्थूल-सूक्ष्म के छह भेद-प्रभेद, पुद्गल की विशेषताएँ-गतिशीलता अप्रतिघातित्व, परिणामी-नित्यत्व, सघनता-सूक्ष्मता आदि का वैज्ञानिक समर्थन किया गया है।
तत्पश्चात् 'पुद्गल की विशिष्ट पर्याय' प्रकरण में पुद्गल का वर्णन करते हुए कहा है
सइंधयार उज्जोओ, पभा छायाऽऽतवे इ य। वण्णरसगंधफासा, पुग्गलाण तु लक्खणं।। उत्तराध्ययन २८.१२
अर्थात् - शब्द, अंधकार, उद्येम, प्रभा, छाया, आतप वर्ण, रस, गंध और स्पर्श ये सब पुद्गल के लक्षणों का विज्ञान के परिप्रेक्ष्य विस्तार से विवेचन किया गया है:
___ध्वनि के विविध उपयोग, चिकित्सा में उपयोग, छाया चित्रांकन में उपयोग कपड़े धोने में उपयोग, इलेक्ट्रोनिक उपयोग, तीन प्रकार के शब्द, अजीव शब्द, रेत का गीत गाना आदि शब्द की गति, भाषा के भिन्न और अभिन्न रूप, तम और छाया, प्रभा, उद्योत, आतप आदि का लगभग ३० पृष्ठों में विस्तार से वैज्ञानिक निरूपण है।
इस प्रकार १०० से अधिक पृष्ठों में अजीव द्रव्य का वर्णन है। विस्तृत जानकारी के लिए लेखक की पुस्तक 'विज्ञान के आलोक में जीव-अजीव तत्त्व' का अवलोकन किया जा सकता है।
विशेष ज्ञातव्य (अजीव तत्त्व) विशेष जानकारी के लिए पूर्व प्रकाशित पुस्तक 'जीव-अजीव तत्त्व' में निम्नांकित प्रकरण पठनीय हैं।
अजीत तत्त्व में- १. धर्मास्तिकाय-ईथर, २. अधर्मास्तिकाय-गुरुत्वाकर्षण आदि, ३. आकाशास्तिकाय, ४. कालद्रव्य - इन चारों का विवेचन विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में पृष्ठ १४३ से १६४ तक पुद्गलद्रव्य का वर्णन पृष्ठ १६५ से २४१ तक ७७ पृष्ठों में दिया गया है। जिसका वर्णन निम्न प्रकार है
जीव-अजीव तत्त्व
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