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अंकित होता है। जिस प्रवृत्ति में जितना अधिक राग-द्वेष होता है, वह प्रकृति उतने ही अधिक काल तक टिकने वाली होती है, अर्थात् अधिक स्थितिवाली होती है और अधिक रस वाली होती है, अनुभाग बढ़ता है। रस या अनुभाग ही कर्म का फल है, उदय है, विपाक है।
यह पहले कह आए हैं कि पाप कर्म ही प्राणी के लिए अनिष्टकर हानि-कारक है । पाप कर्म की प्रकृति अशुभ प्रवृत्ति से बन्धती है और प्रवृत्ति में अशुभत्व रागद्वेष से आता है । मन, वचन और काया की प्रवृत्ति इन्द्रियों के विषयों में होती है । विषय के प्रति विकार होता है तब पाप कर्म बन्धता है। राग-द्वेष (आसक्ति) के अभाव में विषयों से कर्म नहीं बन्धता है जैसाकि हमें आँख खोलते ही सैंकड़ों वस्तुएँ दृष्टिगोचर होती हैं, परन्तु इनके दृष्टिगोचर होने से कर्म नहीं बन्धता है। इन वस्तुओं में से हम जिस वस्तु के प्रति राग या द्वेष करते हैं उसी का प्रभाव हमारी आत्मा पर अंकित होता है, टिकता है, व फल देता है । प्रभाव होना प्रकृति बन्ध है, अंकित होना प्रदेश बन्ध है, टिकना स्थिति बन्ध है, और फल देना अनुभाग बन्ध है । पाप प्रवृत्तियों के ये चारों प्रकार के बन्ध राग-द्वेष व कषाय से ही होते हैं । कहा भी है
'सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान् पुद्गलानादत्ते । स बंधः ।
- तत्त्वार्थ सूत्र 8.2-3
अतः पाप
कषायसहित जीव ही कर्मों के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है, वह बन्ध है। अतः पाप कर्मों का बन्ध वहाँ ही है, जहाँ कषाय है । कषाय के क्रियान्वित होने पर ही कर्म बन्धता है । कषाय मन, वचन, इन्द्रियों के माध्यम से ही क्रियान्वित होता है। प - क्रियाओं से, प्रवृत्ति से ही कर्म बन्धता है । इन्द्रियाँ जब अपने विषय के प्रति राग-द्वेष करती हैं, तब ही वह विषय - सेवन विकार (दोष, पाप) का रूप लेता है, पाँच इन्द्रियों के तेबीस विषय हैं और दो सौ चालीस विकार हैं । ये सब विकार विषयों में राग-द्वेष करने से पैदा होते हैं, इन विकारों के उत्पन्न होने को ही विषयभोग कहा जाता है । अतः विषय भोग और कषाय का घनिष्ठ सम्बन्ध है । विषय भोग और कषाय ही कर्म बन्ध के हेतु हैं । भोगों के त्यागते ही और कषाय का क्षय होते ही समस्त घाती कर्मों, आत्मा के गुणों के घातक पाप कर्मों का क्षय हो जाता है। जिससे आत्मा के समस्त गुण प्रकट हो जाते हैं ।
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प्रकारान्तर से यह कहा जा सकता है कि बाह्य तप से अशुभ योगों का त्याग होता है जिससे अशुभ पाप कर्मों की प्रकृतियों और प्रदेश बन्ध का निरोध होता है।
जैतत्त्व सा