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विशेष जानकारी के लिए निम्नांकित अध्याय पठनीय हैं- सम्यग्दर्शन- सम्यग्दर्शन : स्वरूप एवं महत्त्व, सम्यग्दर्शन प्राप्ति का उपाय : जड़-चेतन, ग्रंथिभेदन, दर्शन गुण का विकास-क्रम : स्वसंवेदन और निर्विकल्पता; सम्यग्ज्ञान-सम्यग्ज्ञान : श्रुतज्ञान, पंचविधज्ञानों का स्वरूप एवं महत्त्व; सम्यक्चारित्र-सम्यक् चारित्र का स्वरूप एवं साधना के तीन रूप, आस्रव-संवर, मुक्ति में सहायक : त्यागमय जीवन, सम्यक्चारित्र से चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय, शुभयोगः संवर; सम्यक्तप-तप का स्वरूप एवं भेद, तप प्रक्रिया से कर्मनिर्जरा, ध्यान तप : कर्मक्षय की साधना, कायोत्सर्ग तप से मुक्ति प्राप्ति : एक अनुचिन्तन, तप : दुःख-विमुक्ति का उपाय।
आमुख ('मोक्ष तत्त्व' पुस्तक से उद्धृत भूमिका)
- डॉ. धर्मचन्द जैन आज व्यक्ति को स्वर्ग और मोक्ष शब्द आकर्षित नहीं करते। वह वर्तमान जीवन में ही सुख की तलाश करता है। ऐन्द्रियक सुखों में वह आसक्त रहता है तथा उसी सुख को पूर्ण मानकर सारा जीवन उस सुख की पूर्ति में लगा देता है। किन्तु इन्द्रियजनित सुखों को भोगने के पश्चात् भी उसके दुःख का अभाव नही होता। सुख सामग्री को जुटाने में वह सदैव सन्नद्ध रहता है, किन्तु दु:ख उसका पीछा नहीं छोड़ता। उसे लाख बार यह समझाया जाए कि इन्द्रिय के विषय भोगों में आसक्त मत बनो तथा जीवन में अधिक परिग्रह एकत्रित मत करो, तथापि मनुष्य को यह बात गले नहीं उतरती है। वह दुनिया के सुख-सुविधा सम्पन्न लोगों को देखता है तथा उनको देखकर उस ओर आकर्षित होता रहता है तथा जिस प्रकार दूसरों ने सुख-सुविधा जुटाई है तथा नीतिअनीतिपूर्वक अथाह धन-समृद्धि प्राप्त की है, उसी प्रकार वह भी बिना अधिक सोचे समझे उसी मार्ग का अनुसरण करता है। दूसरों के दुःख की उसे चिन्ता नहीं होती, दूसरों की हिंसा करके अथवा उनको धोखा देकर या शोषण करके भी वह अधिकाधिक धन-सम्पत्ति को जुटाने में सन्नद्ध रहता है। उसकी कतिपय इच्छाएँ या कामनाएँ पूर्ण होने पर वह विराम नहीं लेता, अपितु उसकी कामनाएँ निरन्तर बढ़ती जाती हैं। कामना की पूर्ति के लिए वह आतुर बना रहता है। अतः झूठ-फरेब का प्रयोग करके भी वह अपनी कामना को पूरी करना चाहता है।
कामना व्यक्ति को अभिप्रेरित तो करती है, किन्तु उसे सही दिशा का बोध नहीं कराती। व्यक्ति कामना के आधार पर ही अपनी भौतिक उन्नति के स्वप्न
मोक्ष तत्त्व
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