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देखता है। पढ़ना, लिखना, किसी पद को प्राप्त करना, व्यवसाय को उन्नत बनाना या अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना बिना कामना के सम्भव नहीं होता है। कामना व्यक्ति को निरन्तर किसी कार्य में प्रवृत्त रखती है। कामना एक प्रकार से व्यक्ति के जीवित होने का परिचय है। वह अपनी समस्त प्रगति इच्छाओं, अभिलाषाओं, कामनाओं अथवा महत्त्वाकांक्षाओं के आधार पर करता है। इसलिए कामना व्यक्ति के जीवन से समाप्त नहीं हो पाती है। न्यून या अधिक रूप में सभी संसारी जीव कामना से युक्त होते हैं।
समस्या यह है कि कामनाओं के अनुसार जीवन जीने पर एवं उनमें से कई की पूर्ति होने पर भी मनुष्य दुःख-मुक्त नहीं होता, बल्कि अधिक कामना वाला व्यक्ति अधिक दुःखी देखा जाता है। इसलिए यह तथ्य उभरकर आता है कि कामना से समस्त दु:खों का निवारण नहीं होता। अन्न, वस्त्र, आवास आदि आवश्यक साधनों की प्राप्ति में भी यद्यपि कामना सहायक है, तथापि वह मनुष्य के मानसिक केशों का निवारण नहीं कर पाती है, अपितु कामना के द्वारा व्यक्ति स्वयं तनावग्रस्त रहता है तथा दूसरों के साथ भी उसका व्यवहार मैत्रीपूर्ण या हितकारी नहीं हो पाता है। मानसिक केशों का निवारण करने के लिए विषय भोगों की कामना, अथवा विषय-भोग समर्थ साधन नहीं बन पाते हैं। इसलिए उन केशों के निवारण हेतु नये उपाय की आवश्यकता होती है। कुछ लोग मद्यपान अथवा अन्य नशे के साधनों को अपनाकर अपने मानसिक केशों को भुलाने का प्रयत्न करते हैं, किन्तु वे उनसे मुक्त नहीं हो पाते। इन केशों से मुक्ति ही मोक्ष है जो व्यक्ति की आन्तरिक दृष्टि एवं उसकी समझ को सम्यक् बनाने पर ही सम्भव है। व्यक्ति की सोच जब तक सही नहीं होगी तब तक मानसिक केशों एवं दुःखों से स्थायी मुक्ति नहीं हो सकती।
भारतीय परम्परा में दुःखों से स्थायी मुक्ति के लिए पर्याप्त चिन्तन हुआ है। जैनधर्म भी इसका एक प्रमुख निदर्शन है। उमास्वाति ने प्रशमरतिप्रकरण में मोक्ष के स्थायी सुख की ओर ले जाने वाले प्रशमसुख की चर्चा की है। उनको ज्ञात था कि स्वर्ग के सुख और मोक्ष के सुख परोक्ष होने के कारण इन पर मनुष्य का विश्वास होना कठिन है। इसलिए उन्होंने इस जीवन में अनुभव होने वाले प्रशमसुख के स्वरूप को समझा तथा उसे प्रस्तुत कर आमजन को उसकी ओर आकर्षित किया। प्रशमसुख वह सुख है जिसका आस्वादन कोई भी व्यक्ति अपने क्रोध, मान, माया, लोभ आदि विकारों का शमन करके प्राप्त कर सकता है। क्रोधी व्यक्ति जब अपने क्रोध को कुछ अंशों में नियंत्रित कर लेता है तो उसे जिस शान्ति का
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जैनतत्त्व सार