Book Title: Jain Tattva Sara
Author(s): Kanhiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 260
________________ होने से ही कामनाओं-ममताओं आदि समस्त विषय-कषाय रूप तृष्णा की उत्पत्ति होती है। देहाभिमान का नाश करना अहंशून्य होना है। देह में अहंत्व ('मैं' पन) व अपनत्व (ममत्व) होने से देहाभिमान उत्पन्न होता है। देहाभिमान से शरीर और संसार से सुख लेने की लालसा उत्पन्न होती है, जो शरीर और संसार की दासता में आबद्ध कर देती है। विवेक के प्रकाश में देखने से इनकी अनित्यता का बोध होता है, जिससे इनसे विरक्ति होती है। विरक्ति इनकी आसक्ति को क्षीण कर देह की दासता से सदा के लिए मुक्त कर देती है। देह से सदा के लिए मुक्त होना ही जन्म-मरण भवभ्रमण से मुक्ति होना, मोक्ष प्राप्त करना है। देह के साथ जन्म, जरा, मरण, रोग आदि दुःख लगे हुए हैं तथा शरीर का इन्द्रिय, मन, वस्तुओं से, संसार से सम्बन्ध स्थापित होता है, यह ही बन्ध है। साधना का लक्ष्य मुक्ति प्राप्त करना है अर्थात् सर्व दुःखों एवं बन्धनों से मुक्त होना है। मुक्तिप्राप्ति की दो साधनाएँ कही गई हैं-संवर और निर्जरा । जैसे किसी गड्ढे में गन्दा जल भरा हुआ है तो उसे सुखाने के दो उपाय हैं-1. नया जल न आने देना और 2. विद्यमान जल को सूर्य के ताप से वाष्प बनाकर उड़ा देना। इसी प्रकार कर्म क्षय करने के दो उपाय है-1. संवर और 2. निर्जरा। नये कर्मों के बन्ध होने (संस्कार निर्माण व अंकित होने) को रोकने के लिए विषय-कषाय आदि दुष्प्रवृत्तियों (पाप प्रवृत्तियों) का त्यागना या संवरण करना संवर-साधना है एवं पूर्व-जीवन में विषयभोगों की सुखासक्ति से शरीर, संसार, कर्म और कषाय के संग व सम्बन्ध जोड़ने से जो कर्म-संस्कार अंकित हुए, कर्म-बन्ध हुए, वे संस्कार व कर्म अंतस्तल में सत्ता में विद्यमान हैं उनसे विवेक (ज्ञान) पूर्वक सम्बन्ध-विच्छेद करने से उनके बन्ध का नाश हो जाना, जर्जरित होकर निर्जरित हो जाना निर्जरा है। निर्जरा-साधना वैसा ही कार्य करती है जैसा सूर्य का ताप गड्ढे के गन्दे जल के शोषण (नष्ट) करने में करता है, अतः निर्जरा-साधना का दूसरा नाम तपसाधना है। तप-साधना से शरीर, संसार, कर्म और कषाय से अतीत होने से निर्वाण की अभिव्यक्ति होती है। मुक्ति : आध्यात्मिक उपलब्धियाँ । सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र एवं तप रूप साधना से जीव के गुणों के घातक चार घातिकर्मों का क्षय होता है, जिससे अठारह दोष क्षय होते हैं एवं नवलब्धियाँ प्रकट होती हैं। मोक्ष तत्त्व [239]

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