Book Title: Jain Tattva Sara
Author(s): Kanhiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 271
________________ के पूर्व वर्षीदान देकर गृहस्थावस्था में दान का आदर्श प्रस्तुत किया और केवलज्ञान होने पर तो अनंतदानी हो गये। तात्पर्य यह है कि दान मानव जीवन का श्रृंगार है, अलंकार है, आभूषण है, अनिवार्य अंग है। यदि यह कहा जाय कि 'मानव-जीवन में दान से बढ़कर कोई वरदान नहीं है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। वरदान का अर्थ ही श्रेष्ठदान है। अतः जो दान रहित है वह वरदान रहित है। उदारता का क्रियात्मक रूप सेवा है। सेवा का फल यह भी होता है कि जिसकी सेवा की जाती है, उसमें स्वतः सेवा का भाव व उदारता जागृत होती है। सेवक में त्याग व उदारता दोनों होती है जो सेव्य में भी इनका बीजारोपण करती है। वस्तुतः दूसरों के अधिकारों की रक्षा करना और अपने अधिकारों का त्याग ही सेवा का स्वरूप है। ___ जो उदार होता है वह किसी का बुरा नहीं चाहता। जो किसी का बुरा नहीं चाहता, वह सुखियों को देखकर प्रसन्न तथा दुःखियों को देखकर करुणित होता है। सुखियों को देखकर प्रसन्न होने से सुख-भोग की कामना क्षीण होती है। इस प्रकार सेवा, वासना-कामना के त्याग में सहायक होती है। सेवा वही कर सकता है जो दूसरों के दुःखों की अनुभूति स्वयं करता हो, अतः सेवा द्वारा दूसरों के दुःखों को दूर करना अपने ही दु:खों को दूर करना है। दूसरों को प्रसन्न करना अपने को ही प्रसन्न करना है। __उदारता से प्रभूत प्रसन्नता अक्षुण्ण होती है। प्रसन्नता से राग गलता है तथा नवीन कामना की उत्पत्ति नहीं होती है। राग गलने से पाप कर्मों का क्षय होता है। उदारता उस हृदय में जागृत होती है जो दुःखियों को देखकर करुणित और सुखियों को देखकर प्रमुदित होता है। उदार महानुभावों के हृदय में तनाव, हीनभाव, द्वन्द्व उत्पन्न नहीं होता है, उनका हृदय सदैव प्रेम व प्रसन्नता से ओत-प्रोत होता है। उदारता का क्रियात्मक रूप दान है। मुक्ति के मार्ग दान, शील, तप और भाव में दान का प्रथम स्थान है। अनन्त लाभ (सम्पन्नता) __ वीतरागता की दूसरी उपलब्धि अनन्त लाभ या सम्पन्नता है। सम्पन्न वही है जो कमी रहित है, अभावरहित है। अभाव व कमी दरिद्रता की द्योतक है। अभाव का अनुभव तभी होता है जब कुछ पाने की कामना हो और उसकी प्राप्ति न हो। वस्त की प्राप्ति श्रम, शक्ति व काल पर निर्भर करती है। अतः कामनापूर्ति तत्काल [250] जैनतत्त्व सार

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